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विचार, चिंतन के निष्कर्ष का अमूर्त रूप है। यह सोचने की ऐसी परिणति है, जो कभी आगे चलकर क्रियान्वयन में मूर्त हो उठती है।
विचार जुगनू भी है, दीपशिखा भी और सूरज भी। वह प्रकाश का हर ऐसा स्रोत है, जो अँधेरे से लड़ने को तत्पर है। वह लहर है, जिसके पास रेत पर अपनी पहचान रचने की संकल्प शक्ति है। वह छेनी है, जिसके पास किसी यक्षी, किसी शालभंजिका, किसी अंबिका को आकार देने की सामर्थ्य है। वह तूलिका है, जो ऐसे रूप को रच देती है, जो रूप हरेक को अपना लगता है। वह ऐसा दर्पण है, जिसमें प्रतिबिंब उलटे दिखाई नहीं देते। ऐसी परछाईं है, जो सूरज के ढलने के साथ घटती नहीं, बल्कि और लंबी होती चली जाती है।
विचार सुबह-सुबह दूब पर ठहरे हुए ओस के कण, ज़मीन पर बिछे हरसिंगार और टप-टप टपककर धरती को महकाते हुए वे फूल हैं, जो केवल धरती का सौरभ और शृंगार बने रहना चाहते हैं, उन्हें आकाश की ऊँचाई की दरकार नहीं होती।
—इसी संग्रह से
शब्दों के कुशल चितेरे श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय के लालित्यपूर्ण ललित निबंधों का पठनीय संकलन।
कृतित्व : ‘समांतर लघुकथाएँ’, नरेंद्र कोहली : व्यक्तित्व एवं कृतित्व’, ‘Sur : A Reticent Homage’ (संपादन), ‘एक भोर जुगनू की’, ‘अँधेरे के आलोक पुत्र’, ‘नदी तुम बोलती क्यों हो?’, ‘फिर फूले पलाश तुम’, ‘सुनो देवता’, ‘बैठे हैं आस लिये’, ‘प्रभास की सीपियाँ’, ‘परदेस के पेड़’, ‘अस्ताचल के सूर्य’ (ललित निबंध-संग्रह), ‘राधा माधव रंग रँगी’, ‘रामायण का काव्यमर्म’, पं. विद्यानिवास मिश्र के साथ ‘गीत-गोविंद’ और ‘रामायण के कलात्मक पक्ष’ पर कार्य। ‘भारतीय चित्रांकन परंपरा’, ‘पार रूप के’, ‘The Concept of Portrait’, ‘Kanheri Geet-Govinda’ (भारतीय कला)। पुरस्कार : ‘मुकुटधर पांडेय पुरस्कार’, ‘वागीश्वरी पुरस्कार’, ‘कलाभूषण सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘संत सिंगाजी सम्मान’ तथा ‘अक्षर आदित्य’ से सम्मानित। फेलोशिप : वर्ष 2003—चॉर्ल्स इंडिया वॉलेस ट्रस्ट, लंदन (ब्रिटिश काउंसिल); वर्ष 2008—शिमेंगर लेडर फेलोशिप, जर्मनी। संप्रति : सदस्य, वाणिज्यिक कर अपील बोर्ड, डी-33, चार इमली, भोपाल (म.प्र.)। इ-मेल : naman60@hotmail.com