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कादंबरी मेहरा की कहानियों का यह नया संग्रह एक बार फिर पाठकों के समक्ष, वास्तविक जीवन से उठाई गई आम आदमी की समस्याओं व उन्हें झेलनेवाले स्त्री-पुरुष पात्रों को उनके मूल स्वरूप में प्रस्तुत करता है।
जागरूक व शिक्षित भारत में अभी भी पत्नी ‘चिर पराई’ है, विधवा को ‘दूसरी बार’ जीवनसंगिनी बना लेने में समाज की मान्यताएँ बाधित करती हैं, कमजोर पति की ब्याहता केवल एक मानहीन भोग्या मात्र है, जिसका प्रतिकार भगवान् उसे स्वस्थ और उत्तरजीवी बनकर लेता है।
‘बाबाजी’, ‘खादानों के शहर’, ‘विम्मी’ आदि कहानियाँ हिंदी जगत् के पाठकों को दूरस्थ देशों के पार्श्व से परिचित करवाती हैं तो ‘एक खत’, ‘मिलन हो कैसे’ समाज के अँधेरों को फरोलती हैं।
कांदबरी मेहरा की संवेदनशील पैनी कलम से रँगी भारतीय समाज की सरल प्रस्तुति।
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अनुक्रम
भूमिका — 7
अपनी बात — 9
1. राखनवार — 15
2. चिर पराई — 17
3. टैटू — 26
4. एक खत — 33
5. कृष्णा की चूडि़याँ — 42
6. दूसरी बार — 52
7. बिखरे पंख — 63
8. बाबाजी — 73
9. उत्तरजीवी — 83
10. वह और उसकी माँ — 93
11. खदानों के शहर की अमर प्रेम-कहानी — 105
12. मिलन हो कैसे? — 110
13. विम्मी — 121
जन्म : 1945।
शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी साहित्य 1965 (भारत), पी.जी.सी.ई. 1979 (इंग्लैंड), ग्रैड. गणित 1985 (इंग्लैंड)।
कार्य : अध्यापन मुख्यधारा 30 वर्ष (इंग्लैंड)।
लेखन : तीन कहानी-संग्रह ‘कुछ जग की’, ‘पथ के फूल’, ‘रंगों के उस पार’ प्रकाशित। अनेक हिंदी पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित।
सम्मान : 2005 एक्सेल नेट कानपुर, 2009 हिंदी संस्थान लखनऊ का भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान, 2010 कथा यू.के. का पद्मानंद साहित्य सम्मान।
पता : 35 द एवेन्यू, चीम, सरे, एस.एम. 2, 7 क्यू.ए., यू.के.
दूरभाष : 0044-2086612455
इ-मेल :
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