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‘चित्रकूट में राम-भरत मिलाप’ रामकथा के महत्त्वपूर्ण प्रसंग का नाट्यरूप में प्रणयन है।
यह घटना जहाँ भ्रातृप्रेम और त्याग का अद्वितीय आदर्श है, वहीं उससे राजधर्म के महान् सिद्धांत प्रस्फुटित हुए हैं।
वर्तमान परिवेश में लेखक ने रामायण की इस घटना को सामान्य जन तक पहुँचाने का प्रयास किया है।
एक ओर इस कृति का स्वागत जहाँ भारतीय जनमानस द्वारा किया जाएगा, वहीं दूसरी ओर राजशासकों द्वारा भी।
आशा है कि इस कृति का व्यापक रूप से पठन-पाठन तथा मंचन होगा।
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अनुक्रम
प्रस्तावना —Pgs. 5
पात्र-परिचय —Pgs. 9
1. अयोध्या की राजसभा —Pgs. 13
2. चित्रकूट के पथ पर —Pgs. 23
3. चित्रकूट का सौंदर्य —Pgs. 33
4. राम से मिलन —Pgs. 41
5. चित्रकूट में सभा —Pgs. 55
6. राम से अयोध्या लौटने का आग्रह —Pgs. 83
7. जाबालि मुनि का भौतिकवाद —Pgs. 93
8. मुखिआ मुखु सो चाहिए —Pgs. 117
9. राम का अयोध्या लौटने का अनुरोध ठुकराना —Pgs. 123
10. त्याग का चरमोत्कर्ष —Pgs. 137
11. राम का अयोध्यावासियों को संदेश —Pgs. 145
12. भरत का चित्रकूट से प्रस्थान —Pgs. 153
डॉ. प्रमोद कुमार अग्रवाल
बरुआसागर, जिला-झाँसी (उत्तर प्रदेश) में जन्मे डॉ. प्रमोद कुमार अग्रवाल हिंदी के प्रख्यात उपन्यासकार, कहानीकार एवं लेखक हैं। अभी तक डॉ. अग्रवाल की हिंदी और अंग्रेजी में पैंसठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी भारतीय वाङ्मय पर अन्य प्रमुख कृतियाँ हैं—‘रामचरितमानस-नाट्य रूप’, ‘मैं राम बोल रहा हूँ’, ‘भगवद्गीता : नाट्य रूप’, ‘राधा की पाती : कृष्ण के नाम’ और ‘संजय-धृतराष्ट्र संवाद’। डॉ. अग्रवाल का कृतित्व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय तथा हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा सम्मानित हो चुका है। भारतीय प्रशासनिक सेवा से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात् संप्रति साहित्य के माध्यम से समाज-सेवा में समर्पित हैं।