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जिस समय भारत में भगवान् महावीर और भगवान् बुद्ध धर्म के संबंध में नए विचार रख रहे थे, उसी समय चीन के शानदोंग प्रदेश में भी कन्फ्यूशियस नामक समाज-सुधारक का जन्म हुआ।
सरकारी नौकरी छोड़कर उन्होंने घर में ही एक विद्यालय खोलकर विद्यार्थियों को शिक्षा देना प्रारंभ किया। 55 वर्ष की आयु में वे लू राज्य में एक शहर के शासनकर्ता और बाद में मंत्री नियुक्त हुए। मंत्री होने के नाते उन्होंने दंड के बदले मनुष्य के चरित्र-सुधार पर बल दिया। कन्फ्यूशियस ने अपने शिष्यों को सत्य, प्रेम और न्याय का संदेश दिया। वे सदाचार पर अधिक बल देते तथा लोगों को विनयी, परोपकारी, गुणी और चरित्रवान् बनने की प्रेरणा देते थे। उनके मत को ‘कन्फ्यूशियसवाद’ या ‘कुंगफुल्सीवाद’ कहा जाता है।
कन्फ्यूशियसवाद के अनुसार समाज का संगठन पाँच प्रकार के संबंधों पर
आधारित है—1. शासक और शासित,
2. पिता और पुत्र, 3. ज्येष्ठ भ्राता और कनिष्ठ भ्राता, 4. पति और पत्नी तथा
5. इष्ट मित्र।
कन्फ्यूशियसवाद की शिक्षा में धर्मनिरपेक्षता का सर्वांगपूर्ण उदाहरण मिलता है। उनका मूल सिद्धांत इस स्वर्णिम नियम पर आधारित है कि ‘दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो, जैसा तुम उनके द्वारा अपने प्रति किए जाने की इच्छा रखते हो।’
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अनुक्रम
भूमिका — Pgs. 5
1. जन्म — Pgs. 9
2. बचपन — Pgs. 14
3. विद्यार्जन — Pgs. 19
4. शोक के तीन साल — Pgs. 25
5. विवाह — Pgs. 29
6. कर्मक्षेत्र में — Pgs. 33
7. पारिवारिक जीवन — Pgs. 36
8. आत्मावलोकन — Pgs. 40
9. लोचांग की यात्रा — Pgs. 43
10. दो विचारधाराएँ — Pgs. 46
11. अध्यापन की शुरुआत — Pgs. 49
12. कन्यूशियस॒का विद्यालय — Pgs. 54
13. आत्म-निर्वासन — Pgs. 57
14. घर वापसी — Pgs. 61
15. बगावत — Pgs. 65
16. समझौता र्वा — Pgs. 69
17. शांतिदूत की भूमिका में — Pgs. 74
18. निर्वासन — Pgs. 78
19. भटकाव के वर्ष — Pgs. 83
20. अंतिम चरण — Pgs. 88
21. कन्यूशियस की विरासत — Pgs. 104
22. कन्यूशियस के विचार — Pgs. 109
23. चीन में धर्म : कन्यूशियस का धर्म — Pgs. 120
24. मानव की श्रेष्ठता के बारे में कन्यूशियस के विचार — Pgs. 149
25. जीवन का स्वर्णिम मार्ग — Pgs. 159
26. कन्यूशियस साहित्य — Pgs. 170
27. कन्यूशियस की प्रमुख सूतियाँ — Pgs. 174
28. कन्यूशियस के जीवन की महवपूर्ण तिथियाँ एवं घटनाएँ — Pgs. 176
29. कन्यूशियस से जुडे़ व्यतियों का विवरण — Pgs. 179
30. कन्यूशियस के प्रमुख शिष्य — Pgs. 181
संदर्भ ग्रंथ — Pgs. 184
डॉ. मनीषा माथुर वर्तमान में कनोडि़या पी.जी. महिला महाविद्यालय, जयपुर में लोक प्रशासन विभाग की प्रमुख तथा सहायक आचार्य के पद पर कार्यरत हैं। राजस्थान विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा एवं पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त कर विगत 17 वर्षों से लोक प्रशासन के अध्यापन से जुड़ी हुई हैं। पुस्तकों के अतिरिक्त विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके लेखादि प्रकाशित
होते रहते हैं। भारतीय प्रशासन, संसद्, संघवाद एवं पंचायती राज के अतिरिक्त साहित्य तथा इतिहास में इनकी विशेष अभिरुचि है।