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यह रिपोर्ताज-संग्रह कोरोनानामा : बुजुर्गों की अनकही दास्तान वैश्विक महामारी कोविड-19 यानी कोरोना-काल में बुजुर्गों के प्रति सजगता को परिलक्षित करती हुई उनकी विशिष्ट भूमिकाओं की एक ग्राउंड रिपोर्ट है। इसमें पाठकों को इस सामाजिक आपातकाल में वृद्धजनों की सेवा, सहयोग और सम्मान के कुछ अप्रतिम उदाहरणों के बारे में पढ़ने को मिलेंगे। बुजुर्गों की सेवा और उनके वीरत्व के ये उत्कृष्ट उदाहरण अत्यंत सराहनीय और अनुकरणीय हैं।
बुजुर्गों के प्रति संवेदना और श्रद्धा की आधारित घटनाओं की सजीवता न सिर्फ आपके हृदय को स्पर्श करेगी वरन् आपको भी किसी-न-किसी रूप में इनसे संबद्ध करेगी। हर वर्ग के पाठकों के भीतर संवेदनाओं को उकेरे और समाज में बुजुर्गों के प्रति हमारी भूमिका को रेखांकित कर पाए तो इसका प्रकाशन सोद्देश्य होगा।
अमित राजपूत युवा स्तंभकार और ब्रॉडकास्टर हैं। वह देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं व पोर्टल्स पर सामाजिक, राजनीतिक व नीतिगत मामलों पर निरंतर लिखते हैं।
जन्म : 4 फरवरी, 1994 को उत्तर प्रदेश के जनपद फतेहपुर के कस्बा खागा में। इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज से स्नातक। गुरु जंभेश्वर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार से परास्नातक। भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में डिप्लोमा।
पुस्तकें : ‘अंतर्वेद प्रवर : गणेश शंकर विद्यार्थी’, ‘आरोपित एकांत : कोविड-19 के कोपाकुल-काल का परिदृश्य’, ‘जान है तो जहान’ तथा ‘कोरोनानामा : बुजुर्गों की अनकही दास्तान’। ‘समोसा’ तथा ‘जंतर का मंतर’ (कहानी-संग्रह)।
रंगमंच पर अनेक नाटक, रेडियो नाटक तथा रेडियो रूपक का लेखन व अभिनय।
संप्रति : भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के सामुदायिक रेडियो में कार्यक्रम समन्वयक हैं।