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सी.वी. रमन विज्ञान की दुनिया में एक ऐसा नाम है, जिनका न केवल भारत में बल्कि समूचे विश्व में एक विशिष्ट स्थान है। वे ही एकमात्र भारतीय वैज्ञानिक हैं, जिन्हें देश में किए गए आविष्कार के लिए नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। यह पुरस्कार उन्हें ‘प्रकाश प्रकीर्णन’ पर उनकी मौलिक खोज के लिए सन् 1930 में प्रदान किया गया था। ‘रमन प्रभाव’ पर आधारित शोध आज भी जारी है तथा विज्ञान के हर क्षेत्र में इसका उपयोग हो रहा है।
रमन ने ध्वनिक, पराध्वनिक, प्रकाशिकी, चुंबकत्व, स्फटिक भौतिकी आदि कई क्षेत्रों में मौलिक अनुसंधान किए। भारतीय वाद्ययंत्रों पर रमन ने गहन अध्ययन किया। रमन एक प्रख्यात वैज्ञानिक ही नहीं, बल्कि स्वप्नद्रष्टा भी थे। विज्ञान से सचमुच प्यार करते थे। उन्होंने विज्ञान के माध्यम से देश की प्रगति का सपना देखा था। आम जनता में विज्ञान के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए वे अकसर सभाओं का आयोजन करते थे, जिसमें वह विज्ञान के क्षेत्र में हुए शोध के बारे में विस्तार से बताते थे।
रमन को भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया था। साधारणतः हिंदी भाषा में उपलब्ध पुस्तकों में वैज्ञानिकों के शोध कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी कम ही मिलती है, परंतु प्रस्तुत पुस्तक में रमन के कार्यों के उल्लेख के साथ उनका विवरण भी दिया गया है, जो सभी आयु वर्ग के पाठकों में विज्ञान के प्रति उत्सुकता जगाने एवं उन्हें प्रेरित करने में सफल होगी।
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अनुक्रमणिका
प्राक्कथन — Pgs. 5
प्रस्तावना — Pgs. 7
1. संक्षिप्त जीवनी — Pgs. 13
2. कलकत्ता प्रवास — Pgs. 38
3. रमन प्रभाव को नोबेल पुरस्कार — Pgs. 61
4. बैंगलौर में रमन — Pgs. 83
5. रमन स्पेक्ट्रमिकी एवं इसकी उपयोगिता — Pgs. 94
6. रमन अनुसंधान संस्थान में आगमन — Pgs. 105
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक (ऑनर्स) की उपाधि सन् 1969 में प्राप्त करने के बाद भामा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई में चार दशक तक कार्यरत रहे। 1980 में मुंबई विश्वविद्यालय ने उन्हें पी-एच.डी. की उपाधि प्रदान की। वे सन् 1977-78 में जर्मनी गए, जहाँ न्यूट्रॉन का संलयन-आवरण के साथ होनेवाली अभिक्रियाओं पर कार्य किया। सन् 1988-89 में अतिथि वैज्ञानिक के पद पर उन्होंने स्विट्जरलैंड में थोरियम अभिजनन पर प्रयोगात्मक अध्ययन किया। 1995 में जापान विज्ञान विकास समिति के आमंत्रण पर वे वहाँ थोरियम आधारित संलयन-विखंडन संकर प्रणाली पर कार्य करने गए थे। अब तक उनके 150 से भी अधिक शोध-पत्र एवं कई लेख हिंदी की प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिकाओं में प्रकाशित। ‘नाभिकीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन’ पुस्तक के सह लेखक के तौर पर उन्हें 2004 में ‘मेघनाद पुरस्कार’ मिला।संप्रति : भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र से सेवानिवृत्ति के बाद परमाणु ऊर्जा विभाग, भारत सरकार ने उन्हें राजा रमन्ना फैलोशिप प्रदान की, जिसके तहत सन् 2009 से प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान, गांधीनगर में कार्यरत हैं।