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शेर बड़ी मस्त चाल से आ रहा था। बगल की पहाड़ी पर पतोखी बोली। अलसाते-अलसाते उठाते हुए अपने भारी पैरों को शेर ने एकदम सिकोड़ा, बिजली की तरह गरदन मरोड़ी, पीछे के पैरों पर सधा और जिस ओर से पतोखी बोली थी उस ओर एकटक देखने लगा।
खरी चाँदनी में उसकी छोहें स्पष्ट दिख रही थीं। सफेद बाल और छपके चमक रहे थे । भारी भरकम सिर की बगलों में छोटे-छोटे कान विलक्षण जान पड़ते थे । शेर जरा सा मुड़ा़, तब उसके भयंकर पंजे और भयानक बाहु और कंधे दिखलाई पड़े । गरदन जबरदस्त मोटी और सिर से पीठ तक ढालू । उसके पुट्ठों को देखकर मन पर आतंक-सा छा गया । शेर फिर मचान के सामने सीधा हुआ । उसने मेरी ओर गरदन उठाई । चंद्रमा के प्रकाश में उसकी ओंखें जल रही थीं । वह टकटकी लगाकर मेरी ओर देखने लगा- और मैं तो आँख गड़ाकर उसकी ओर पहले से ही देख रहा था । एक क्षण के लिए मन चाहा कि गोली छोड़ दूँ; परंतु जंगल का शेर- और इतना बड़ा- जीवन में पहली बार देखा था, इसलिए मन में उसको देखते रहने का लालच उमड़ा ।
शेर कई पल मेरी ओर देखता रहा । उसको संदेह था । वह जानना चाहता था कि मैं हूँ कौन? पर मैं अडिग और अटल था । उसको बाल बराबर भी हिलता नहीं दिखा । जब शेर मेरा निरीक्षण कर चुका तब बैल के पास गया । उसने अपना भारी जबड़ा बैल के ऊपर रखा और दाढें गड़ाकर एक झटका दिया । एक ही झटके में कई आदमियों के बाँधे हुए बाँस के खपचे तड़ाक से टूट गए । दूसरी बार मुँह हाल कर जो उसने झटका दिया तो बैल तीन- चार हाथ की दूरी पर जा गिरा ।
-इसी पुस्तक से
मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।
ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्टि प्रदान की ।
आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पद्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।