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Dadi Janki : Manav Seva Ke Sau Varsh   

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Author Liz Hodgkinson
Features
  • ISBN : 9789351867814
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Liz Hodgkinson
  • 9789351867814
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2016
  • 224
  • Hard Cover
  • 300 Grams

Description

यह पुस्तक विश्वप्रसिद्ध आध्यात्मिक संस्था ‘ब्रह्माकुमारी’ की शिक्षाओं को भारत से बाहर प्रसारित करने में और ब्रह्माकुमारी को एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक आंदोलन के रूप में स्थापित करने के लिए पूज्य दादी जानकी की अद्भुत उपलब्धियों पर केंद्रित है। यह कोई आधिकारिक आत्मकथा नहीं है, बल्कि तीस वर्षों की मित्रता पर आधारित एक स्नेहपूर्ण व्यक्तिगत विवरण है। प्रख्यात लेखिका लिज हॉजकिंसन विशेष रूप से दादी की प्रबल इच्छाशक्ति, जनकल्याण-दृष्टि तथा महिलाओं के सशक्तीकरण के उनके उत्साह की प्रबल समर्थक हैं। यह पुस्तक दादी की दूसरों के अंदर छुपी प्रतिभाओं और गुणों को बाहर निकाल लेने की क्षमता को भी रेखांकित करती है। लिज का यह विवरण ब्रह्माकुमारियों से जुड़े अनेक ऐसे लोगों की कहानियों पर आधारित है, जिन्होंने दादी के साथ रहकर काम और अध्ययन किया है।
मानवता को समर्पित श्रद्धेय दादी जानकी के त्यागपूर्ण और प्रेरक जीवन की अंतर्यात्रा है यह कृति।

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अनुक्रम

भूमिका — Pgs. 5

परिचय — Pgs. 7

आभार — Pgs. 13

1. दादी जानकी का लंदन आना — Pgs. 17

2. जयंती कृपलानी सन् 1968 से समर्पित बी.के. की कहानी — Pgs. 35

3. मूल शिक्षा — Pgs. 45

4. ब्रह्माकुमारीज बननेवाले पश्चिम के पहले लोग — Pgs. 57

5. मॉरिन और डेविड गुडमैन — Pgs. 72

6. ब्रह्मचर्य का महव — Pgs. 91

7. स्त्रीत्ववाद — Pgs. 99

8. दो हिंदू महिलाएँ, जो सन् 1978 में ब्रह्माकुमारीज बनीं जयमिनी पटेल और गायत्री नारायण — Pgs. 113

9. चिंतन — Pgs. 122

10. अव्यवस्था को खत्म करने का महव दादी ने शुरुआत की — Pgs. 134

11. बीमारी की भूमिका — Pgs. 149

12. 1980 का दशक — Pgs. 162

13. नबे का दशक और शून्यता — Pgs. 179

14. मध्य-पूर्व — Pgs. 201

उपसंहार — Pgs. 218

दादी जानकी संक्षिप्त जीवनी — Pgs. 223

 

The Author

Liz Hodgkinson

लिज हॉजकिंसन 1981 से ब्रह्माकुमारी से जुड़ी हुई हैं। उस समय उन्होंने ‘शी’ पत्रिका के लिए उन पर लेख लिखा था। उनके सिद्धांतों और जीवनशैली के बारे में जानकर उन्हें इतना अच्छा लगा कि उन्होंने उनसे निकट संपर्क बना लिया, हालाँकि वे स्वयं औपचारिक रूप से ब्रह्माकुमारी नहीं बनीं। लिज ने भारत में ब्रह्माकुमारियों के माउंट आबू स्थित मुख्यालय में कई यात्राएँ कीं और दादी जानकी तथा अन्य वरिष्ठ बहनों के साथ अकसर सार्वजनिक रूप से मंचों पर आईं।
हाल के वर्षों में ब्रह्माकुमारियों और उनके प्रभावों के बारे में लिखना एक मिशन का रूप ले चुका है। लिज पहले भी ब्रह्माकुमारियों के बारे में दो पुस्तकें लिख चुकी हैं—संगठन का अनौपचारिक इतिहास ‘पीस एंड प्योरिटी’, ब्रह्माकुमारियों की यूरोपीय निदेशक बहन जयंती के साथ वार्त्ता की शृंखला, ‘ह्वाई वूमैन बिलीव इन गॉड’। पूरे परिवार के लिए ब्रह्माकुमारियाँ, और खासकर दादी जानकी, अनंत आकर्षण और विमर्श का विषय हैं और यह सिलसिला लंबे समय तक कायम रहनेवाला है।

 

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