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दहलीज़ पार में मैंने अपने समाज की जीव-कोशिका में जमी बैठी नर-नारी के रिश्तों के असंतुलन को प्रदर्शित किया है। कुछ कहानियाँ तो अपने आसपास से सुनी ध्वनि मात्र से उपजी हैं और कुछ अपनी लंबी जीवन-यात्रा के अनुभव से जुड़ी हैं। लगभग सभी में स्त्री का निम्न व घटिया स्तर खुलेआम घटित दिखता है। उदाहरण के तौर पर ‘नारी दिवस’ में नर-नारी के संबंधों में असमानता की स्थिति की वजह से कैसे रुक्मिणी दुःखद और असहनीय परिस्थितियों में दूसरे दरजे की गृहिणी बन, अस्वीकृत हो, अपमानित समय गुज़ार आख़िकार जवानी में आत्महत्या कर लेती है। पुराने ज़माने की स्त्री प्रत्यक्ष रूप से और आज की नारी अस्पष्ट व अप्रत्यक्ष रूप से, आधुनिकता के आवरण से ढकी ‘मनु संसार’ में सेकंड क्लास नागरिक बनी चली चलती है। चाहे सभी कहानियाँ समाज में व्याप्त विद्रूपताओं का आईना हैं, लेकिन फिर भी बहुत रिश्तों में प्यार की एकात्मता की .खूबसूरती व गहराई एक स्थिर स्वर-धुन बन जाती है दहलीज़ पार में।
इंदु रांचन की विचारधारा का अंदाज़ा उनकी कहानियों से लगाया जा सकता है। इंडिया और अमरीका की लंबी रिहाइश की वजह से उनके अनुभव में दोनों सभ्यताओं का प्रभाव दिखता है। एम.ए. इंग्लिश लिटरेचर की डिग्री यूनिवर्सिटी ऑ़फ विस्कॉनसिन, अमरीका से प्राप्त कर, कॉलेज में अंग्रेज़ी भाषा व साहित्य पढ़ाने में उनका योगदान रहा। उनकी अंग्रेज़ी ग्रामर की तीन किताबें छपी हैं। 2010 में उनका बच्चों की कहानियों का संग्रह बिंदास बंदर और बातूनी बारात प्रकाशित हुआ। हिंदुस्तान टाइम्स की नंदन पत्रिका में भी उनकी कहानियाँ छपी हैं। इंदु रांचन का झुकाव बच्चों की कथा-रचना में स्वाभाविक ही है। हिंदी व अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में लिखी बहुत सी कथाएँ अभी हस्तलेख रूप में ही हैं।
इनकी दो कृतियाँ— एक उपन्यास नो चाइल्डज़ प्ले और दूसरा कहानी-संग्रह फ़्रॉम द टैरस शीघ्र ही प्रकाशित हो पुस्तक रूप में आने वाली हैं।