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दंड का अरण्य युवा उपन्यासकार ब्रह्मवीर सिंह की नक्सलवाद से उपजे दर्द को लेकर निष्पक्ष दृष्टि है। नक्सली और खाकी के बीच पिसती आदिवासियों की साँसों का लेखा-जोखा है और मौतों के बाद छलके आँसुओं को स्वर देनेवाली अभिव्यक्ति है।
दंड का अरण्य सैकड़ों लोगों की हत्याओं के सौदागरों और गुनहगारों के चेहरे से नकाब उठाता है। बेबस लोगों की लाशों पर भावनाओं का कड़वा सच है। वैसे नक्सलवाद को लेकर लेखन बहुत हुआ है, बहुत हो रहा है। परंतु यह कृति निष्पक्षता का भरोसा दिलाती है।
दंड का अरण्य किसी वाद का विरोध नहीं करता। किसी विवाद को जन्म नहीं देता। यह उपन्यास विचारों की हिंसा में टूटती साँसों की दो-टूक अभिव्यक्ति है।
आशा है, उपन्यास नक्सलवाद के रहते उपजी लोगों की बेबसी को नए नजरिए से पारिभाषित करेगा। विचारों के आवरण को हटाएगा और...सच न देखने के लिए मुँदी आँखों को खोल सकेगा।
जन्म : 02 जुलाई, 1979 को भरतपुर, राजस्थान में।
शिक्षा : भोपाल से पत्रकारिता में डिप्लोमा।
1999 में ‘दैनिक भास्कर’, भोपाल से पत्रकारिता की शुरुआत। रायपुर में वर्ष 2000 से प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में समान रूप से सक्रिय। संवेदनशील विषयों पर शोधपरक खबरें और सतत लेखन।
प्रकाशन : ‘दशरथ का वनवास’, ‘उधार की दुल्हन’, ‘कार्तिकी काकी’, ‘खेती की मौत’, ‘अमावस की आस्था’, ‘बाबा की सियासत’ एवं ‘दलित की दोस्ती’ (कहानियाँ) एवं ‘अभिमत’ पुस्तक प्रकाशित।
संप्रति : ‘दैनिक हरिभूमि’ में समाचार संपादक।
संपर्क : 304 ए, सीजी हाइट्स, दलदल सिवनी मोवा, रायपुर।
इ-मेल : brahmaveer@gmail.com