"दर्द का देवता' पुस्तक में लॉकडाउन के बाद उनकी पीड़ा को जमीनी स्तर पर लिखा गया, जो अपने आँखों, समाचार-पत्रों, बहुत पलायन किए मजदूरों, आदिवासी समुदाय के जीवन में परेशानी तथा ग्रामीण और शहरी दोनों की पीड़ा का वर्णन किया है। इस कोरोना ने लोगों का रोजगार और शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त होना, ये सब आने वाले भविष्य को कितना पीछे कर दिया है। जिसका इस पुस्तक में वर्णन किया है। साथ- ही-साथ उन लोगों को भी प्रभावित किया, जो सिर्फ प्रत्येक दिन कमाने-खाने पर टिका था, उन सबकी जिंदगी पूरी तरह बरबाद हो गई, अच्छे कमाने वाले परिवार भी आर्थिक तंगी का शिकार हो गए।
अमीर हो या गरीब, सभी के एक ही जैसे हालात थे। कमरे में रहकर तमाम दिन काटना, बोझ बन गया था, इसलिए युवा भी लड़ाई-झगड़ा, मानसिक अवसाद से ग्रसित होते जा रहे थे। परिवार समाज अलग ही परेशान थे। दलित समुदाय भी बहुत ही परेशानी से जीवन गुजर-बसर कर रहे थे, जिससे महादलित वर्ग की भी पीड़ा काफी कठिनाई से भरी थी। हालात इतने चिंताजनक हो गए थे कि कोरोना ने भारतीय नागरिक को, 4 लाख 70 हजार लोगों को मौत के गाल में पहुँचा दिया।"