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विनोद बंधु ईमानदारी और पारदर्शिता से ओत-प्रोत कुछ प्रामाणिक पत्रकारों में से एक हैं। ‘दैनिक हिंदुस्तान’ में सन् 2012 से 2015 के बीच उन्होंने अपने साप्ताहिक कॉलम ‘दस्तक’ में अनेकानेक विषयों पर लिखा था, जो राजसत्ता के लिए चेतावनी देनेवाले और नागरिक समाज के लिए आँख खोलनेवाले होते थे। चूँकि दैनिक हिंदुस्तान बिहार में सर्वाधिक बिकनेवाला अखबार है, इसलिए उनके कॉलम का सरकार पर अकसर निर्णायक प्रभाव होता था। फलतः सरकार अपनी कमियों को दुरुस्त ही नहीं करती थी, बल्कि अपने शासन-तंत्र को भी एक काम करनेवाले राज्य के ढाँचे में बदलने की कोशिश करती थी। ‘दस्तक’ अपनेपन की भावना के साथ बिहार का प्रचार-प्रसार करने में भी बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता था। ऐसे समय में जब राज्य में उप-राष्ट्रीयता की भावना लगभग अनुपस्थित थी, उसको मजबूत करने में ‘दस्तक’ की गंभीर भूमिका रही। उप-राष्ट्रीयता कोई गुप्त एजेंडा नहीं है। इसे मजबूत करने के लिए ज्वलंत सामाजिक मुद्दों के प्रति चिंतित होना जरूरी है। ऐसे मुद्दे उनके कॉलम में निखरकर आते थे। ‘दस्तक’ में बिहार के बजट या अन्य आर्थिक मुद्दों पर ही बारीकी से चर्चा नहीं होती थी, बल्कि उसमें राज्य को ‘विशेष श्रेणी’ का दर्जा दिलाने के लिए एक जुझारू प्रयास दिखता था। ‘दस्तक’ सरकार के लिए कोई थपकी नहीं थी। यह नागरिक समाज के लिए महत्त्वपूर्ण सुझाव था। यह एक ऐसा उत्प्रेरक माध्यम था, जिसने अनेक बहस-मुबाहिसे पैदा किए। सोशल मीडिया के दौर में, जब वास्तविकता को समझना मुश्किल है, ‘दस्तक’ ने राज्य के सबसे महत्त्वपूर्ण दौर में सामाजिक आलोड़न पैदा करने में पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभाई।
—शैवाल गुप्ता
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अनुक्रम | 59. बिहार का कृषि विकास राष्ट्रीय एजेंडा क्यों नहीं? —Pgs. 135 |
बिहार की दास्ताँ है—दस्तक —Pgs. 5 | 60. सक्रिय समाज और संकल्पित जनता बदल सकती है तस्वीर —Pgs. 137 |
दस्तक से पहले —Pgs. 7 | 61. समावेशी विकास मॉडल का सूत्रधार बनेगा बिहार —Pgs. 139 |
1. जो समय मिला, उसका कितना उपयोग हुआ? —Pgs. 17 | 62. बिजली का मोर्चा जीतने को जरूरी है बेहतर तालमेल —Pgs. 141 |
2. यह है बिहार हित की राजनीति का मॉड्यूल —Pgs. 19 | 63. विकास पर बनाए रखिए एका के इस जज्बे को —Pgs. 143 |
3. देवव्रत ने सच कबूलने का साहस दिखाया —Pgs. 21 | 64. बिहार के शहरों और कस्बों को किसने बनाया बदसूरत? —Pgs. 145 |
4. विपक्ष के कमजोर होने का जिम्मेदार कौन? —Pgs. 23 | 65. विकास पर इस बहस को पारदर्शी बनाने की जरूरत —Pgs. 147 |
5. चुनाव से तय होगी शहरों की तकदीर —Pgs. 25 | 66. रेल और आम बजट में बिहार की उपेक्षा क्यों? —Pgs. 149 |
6. जनाधार की चिंता और जातीय आस्था के मायने —Pgs. 27 | 67. बैंकों का यह रवैया उनके हितों के भी अनुकूल नहीं —Pgs. 151 |
7. कई मौजूँ सवालों के जवाब अभी बाकी हैं —Pgs. 29 | 68. निवेश की इस शुरुआत के बड़े नतीजे आएँगे —Pgs. 153 |
8. वाह! एक तीर के अनगिनत निशाने —Pgs. 31 | 69. राज्यों को धन देने की समय-सीमा क्यों नहीं? —Pgs. 155 |
9. बड़प्पन दिखाने में पिछड़ गई भाजपा —Pgs. 33 | 70. परिश्रम से अर्जित धन ही असल लक्ष्मी! —Pgs. 157 |
10. होश में जोश का यह अद्भुत संगम —Pgs. 35 | 71. इस आईने में दिखती है देश-प्रदेश की तस्वीर —Pgs. 159 |
11. डूबते ‘ठाकरे जहाज’ को चाहिए तिनके का सहारा —Pgs. 37 | 72. रेल और आम बजट पर टिकीं बिहार की निगाहें —Pgs. 161 |
12. केंद्र सरकार की असली परख दिल्ली रैली के बाद —Pgs. 39 | 73. केंद्र ने उम्मीदें जगाईं और निराश भी किया —Pgs. 163 |
13. निराधार तर्कों से नहीं बनता मजबूत आधार —Pgs. 41 | 74. जरूरत निचले स्तर पर इच्छाशक्ति की —Pgs. 165 |
14. बिहार में इतिहास ने खुद को दोहराया —Pgs. 43 | 75. सूबे की रेल परियोजनाएँ कब तक उपेक्षित रहेंगी? —Pgs. 167 |
15. काश! चर्चा इस समय शहीदों की वीर गाथा पर केंद्रित होती —Pgs. 45 | 76. फसल बीमा पर सियासी शास्त्रार्थ —Pgs. 169 |
16. भटकल की गिरफ्तारी और राजनीतिक जंग —Pgs. 47 | 77. टैक्स चोरी का यह रैकेट विकास की राह का रोड़ा —Pgs. 171 |
17. रेड कारपेट के रास्ते नहीं बन सकता रेड कॉरिडोर —Pgs. 49 | 78. नौकरशाही के लिए यह बड़ा सबक है —Pgs. 173 |
18. विधानमंडल का ताजा सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ेगा? —Pgs. 51 | 79. दिशा-निर्देशों पर अमल क्यों नहीं? —Pgs. 175 |
19. चुनावी शास्त्रार्थ को मुद्दों से भटकाने के प्रपंच भी —Pgs. 53 | 80. प्राथमिकता वाले क्षेत्र में सुस्ती बड़ी घातक —Pgs. 177 |
20. ताकि विशेष राज्य के दर्जे के संघर्ष की धार कुंद न हो —Pgs. 55 | 81. गुड पुलिसिंग में मॉडल बनने की तमन्ना क्यों नहीं? —Pgs. 179 |
21. ब्रांडिंग और वास्तविकता के बीच गठबंधन की डोर —Pgs. 57 | 82. ऐसे सख्त कदम बदलेंगे मिजाज —Pgs. 181 |
22. आप के प्रति आकर्षण की गहराइयों में झाँकें —Pgs. 59 | 83. रणनीतिक कौशल और सूचना तंत्र की कंगाली —Pgs. 183 |
23. दोस्ती और वैचारिक व्रत टूटे राजनीति ने नई परिभाषा गढ़ी —Pgs. 61 | 84. क्यों चाहिए प्रखंड और जिले? —Pgs. 185 |
24. जनहित के मुद्दों पर मंथन ज्यादा जरूरी —Pgs. 63 | 85. भ्रष्टाचार खत्म करना है, तो बदलनी होगी कसौटी —Pgs. 187 |
25. चिंता कल की करें या आनेवाले कल की? —Pgs. 65 | 86. सामाजिक चेतना का अभियान अब जरूरी —Pgs. 189 |
26. दल-बदल की आँधी भी कोई वन वे ट्रैफिक नहीं —Pgs. 67 | 87. निचले स्तर के भ्रष्टाचार को रोकना बड़ी चुनौती —Pgs. 191 |
27. बिहार की दुःखती रगों पर ही गडकरी ने हाथ रखा! —Pgs. 69 | 88. खाद्य सुरक्षा की राह में कई बड़ी चुनौतियाँ भी —Pgs. 193 |
28. घोषणा-पत्र पर जवाबदेही से क्यों मुकर रही हैं पार्टियाँ? —Pgs. 71 | 89. क्यों है भ्रष्टाचारी की जाति जानना जरूरी? —Pgs. 195 |
29. गाँवों में ज्यादा दिख रहा वोट का जज्बा —Pgs. 73 | 90. सामाजिक शर्म बने भ्रष्टाचार —Pgs. 197 |
30. यूँ ही नहीं फिसल जाती बड़े नेताओं की जुबान —Pgs. 75 | 91. भरथुआ के ग्रामीणों के इंसाफ को सलाम —Pgs. 199 |
31. नीतीश के इस्तीफे का फैसला साधारण नहीं —Pgs. 77 | 92. विरोध का यह अंदाज लोकतंत्र के खिलाफ —Pgs. 201 |
32. अब रणनीति के केंद्र में राजनीति की अगली कड़ी —Pgs. 80 | 93. मधुबनी में जनभावना को समझने में हुई चूक —Pgs. 203 |
33. गहरा रहा है जदयू का आंतरिक संकट —Pgs. 83 | 94. क्या हर समस्या के समाधान का रास्ता जाम से गुजरता है? —Pgs. 205 |
34. वैकल्पिक राजनीतिक समीकरण की पहल —Pgs. 85 | 95. बात रखने की इस प्रवृत्ति का ओर-छोर कहीं और! —Pgs. 207 |
35. बिहार में चुनावी महाभारत दो ध्रुवीय होने के आसार —Pgs. 87 | 96. आस्था का उग्र प्रदर्शन क्या धर्म का अपमान नहीं? —Pgs. 209 |
36. शिक्षा विभाग के रवैये से गंभीर बन रहीं चुनौतियाँ —Pgs. 89 | 97. पुरावशेषों के प्रति ऐसी उदासीनता समझ से परे —Pgs. 211 |
37. काश! इसे संकल्प का दिवस बना पाते —Pgs. 91 | 98. तो महासुंदरी की मुराद कैसे पूरी होती? —Pgs. 213 |
38. नर्सरी बंद रही, तो कैसे पनपेगी नई पौध? —Pgs. 93 | 99. बच्चों से हमने क्या छीना और बदले में क्या दिया? —Pgs. 215 |
39. राहतजीवी सोच है विकास में बाधक —Pgs. 95 | 100. पेड़ों पर पेंटिंग, मैथिली फिल्म और धरहरा —Pgs. 217 |
40. केंद्रीय विवि पर जिद के निहितार्थ को समझे केंद्र —Pgs. 97 | 101. सेहत के बीमा में निष्ठा है दाँव पर —Pgs. 219 |
41. वी.सी. नियुक्ति पर लगे नारों के निहितार्थ गंभीर —Pgs. 99 | 102. मौत के इन सौदागरों के खजाने पर चोट जरूरी —Pgs. 221 |
42. नालंदा विवि की स्थापना में अब उदासीनता क्यों? —Pgs. 101 | 103. सांस्कृतिक आदान-प्रदान की यह खूबसूरत मिसाल —Pgs. 223 |
43. इसे बिहार की जिद नहीं सत्य का आग्रह मानिए —Pgs. 103 | 104. समाज भी इस चुनौती के खिलाफ खड़ा हो —Pgs. 225 |
44. इस आईने में चेहरा देखें तो सबका भला —Pgs. 105 | 105. क्रिकेट की पिच को राजनीति से बख्श दें —Pgs. 227 |
45. इच्छाशक्ति ने बनाया कृषि का रोल मॉडल —Pgs. 107 | 106. जमीन की खरीद-बिक्री में फर्जीवाड़ा नई चुनौती —Pgs. 229 |
46. समारोहों से बने माहौल को विस्तार देना होगा —Pgs. 109 | 107. धमारा हादसे का जिम्मेवार कौन? सवाल आज भी मौजूँ —Pgs. 231 |
47. बिहार की धरोहर है धरहरा —Pgs. 111 | 108. दरभंगा-जयनगर एनएच के आईने में देखें अपना चेहरा —Pgs. 233 |
48. समय की माँग है शर्तों में संशोधन —Pgs. 113 | 109. घर में घूँघट और खुले में शौच, कैसा विरोधाभास? —Pgs. 235 |
49. इसमें बिहार का भी पुनर्जन्म निहित है —Pgs. 115 | 110. सोहेल अपहरण कांड से परदा हटाने में सहयोग करें हनीफ —Pgs. 237 |
50. क्या बिहार का दर्द भी कोई समझेगा? —Pgs. 117 | 111. सीमांध्र को विशेष दर्जा से उठा फैसले की कसौटी पर सवाल —Pgs. 239 |
51. पवार साहब! बिहार का अपराध क्या है? —Pgs. 119 | 112. पेयजल पर सरकारी चिंता मौसमी क्यों? —Pgs. 241 |
52. यह बिहार के हक की लड़ाई है —Pgs. 121 | 113. धरती की प्यास बुझी नहीं तबाही का खतरा सिर पर —Pgs. 243 |
53. कोई भी विचार अंतिम या अनुपयोगी नहीं होता —Pgs. 123 | 114. आवागमन को सुगम बनाने की चिंता क्यों नहीं? —Pgs. 245 |
54. बिहार ने इंसाफ की आधी जंग जीत ली —Pgs. 125 | 115. यह संगठित ताकत का बेजा इस्तेमाल नहीं? —Pgs. 247 |
55. सांस्कृतिक आदान-प्रदान की यह खूबसूरत मिसाल —Pgs. 127 | 116. आधा-अधूरा मन और बड़ा मंसूबा —Pgs. 249 |
56. सीठियो के माथे पर राष्ट्रीय धर्म निभाने का सेहरा भी —Pgs. 129 | 117. ऐसी करतूतों से जंगली सभ्यता भी शरमा जाए! —Pgs. 251 |
57. विशेष दर्जे का लाभ लेने की रणनीति अभी से बने —Pgs. 131 | 118. चुनौतियों के बीच सब्र कोई प्रकृति से सीखे —Pgs. 253 |
58. आयोजन के बाद संवाद और सरोकार भी जरूरी —Pgs. 133 | 119. नेपाल को लेकर समय रहते सँभलना जरूरी —Pgs. 255 |
विनोद बंधु
जन्म : 3 अगस्त, 1964 मधुबनी।
शिक्षा : स्नातक (ऑनर्स)।
कृतित्व : सन् 1984 से पत्रकारिता में सक्रिय; 1984 में ‘जनचेतना’ पत्रिका का संपादन; पाटलिपुत्र टाइम्स, आर्यावर्त और जनमत आदि पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन; 1986 में नवभारत टाइम्स से जुड़े; 1995 में राष्ट्रीय नवीन मेल के संपादकीय प्रभारी रहे; 1997 में दिल्ली पहुँचे और न्यूज चैनल टी.वी.आई. में सीनियर असिस्टेंट न्यूज प्रोड्यूसर के पद पर कार्य किया; 1999 से अमर उजाला के विभिन्न संस्करणों में कार्य किया; 2004 में आउटलुक के बिहार-झारखंड प्रभारी बने; 2008 में नई दुनिया के बिहार-झारखंड प्रभारी बने; 2010 में हिंदुस्तान, भागलपुर के संपादक बने; फिर हिंदुस्तान, पटना में राजनीतिक संपादक रहे। वर्तमान में ‘हिंदुस्तान’ के झारखंड स्टेट एडिटर हैं।
संपर्क : वीणा कुंज, शेख गली रोड, ग्राम-पोस्ट—रांटी, मधुबनी-847211 (बिहार)।
इ-मेल : vinod_bandhu@rediffmail.com