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“मैंने आपसे अपने शिष्य को दीक्षा देने का अनुरोध किया था।” “किसको दीक्षा?” “जिसको आपने शिक्षा दी है, एकलव्य को।” “उसको मैंने शिक्षा नहीं दी है।” आचार्य ने बड़ी रुक्षता से कहा, “उसे तो मेरे मूर्ति ने शिक्षा दी है। एकलव्य को यदि दीक्षा लेनी है तो उसी मूर्ति से ले।” अब तो हिरण्यधनु के रक्त में उबाल आ गया। वह भभक पड़ा, “आपने शिक्षा नहीं दी थी तो आप गुरुदक्षिणा लेनेवाले कौन थे?” उसने बड़े आवेश में एकलव्य का दाहिना हाथ उठाकर दिखाते हुए पूछा, “इस अँगूठे को किसने कटवाया था?” “बड़े दुर्विनीत मालूम होते हो जी। तुम हस्तिनापुर के आचार्य से जबान लड़ाते हो! तुम्हें लज्जा नहीं आती?” “लज्जा तो उस आचार्य को आनी चाहिए थी जिसने गुरुदक्षिणा ले ली, पर दीक्षा देने से मुकर गया।” अब हिरण्यधनु पूरे आवेश में था, “क्या यही उसकी नैतिकता है? क्या यही आचार्य-धर्म है?” “अब बहुत हो चुका, हिरण्यधनु! अपनी जिह्वा पर नियंत्रण करो। मैं तुम्हें दुर्विनीत ही समझता था, पर तुम दुर्मुख भी हो।”
“सत्य दुर्मुख नहीं होता, आचार्य, कटु भले ही हो। पर आप उस भविष्य की ओर देखिए जो आप जैसे आचार्य की ‘करनी’ के फलस्वरूप अपने संतप्त उत्तरीय में हस्तिनापुर का महाविनाश छिपाए है। आपकी ‘करनी’ का ही परिणाम है कि आप सब एक ज्वालामुखी पर खड़े हैं!” वनराज के इतना कहते-कहते ही एकलव्य ने अपने पिता के मुख पर हाथ रखा और उन्हें बलात् बाहर की ओर ले चला। —इसी पुस्तक से
मनु शर्मा ने साहित्य की हर विधा में लिखा है। उनके समृद्ध रचना-संसार में आठ खंडों में प्रकाशित ‘कृष्ण की आत्मकथा’ भारतीय भाषाओं का विशालतम उपन्यास है। ललित निबंधों में वे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं तो उनकी कविताएँ अपने समय का दस्तावेज हैं। जन्म : सन् 1928 की शरत् पूर्णिमा को अकबरपुर, फैजाबाद में। शिक्षा : काशी विश्वविद्यालय, वाराणसी।
किताबें : ‘तीन प्रश्न’, ‘राणा साँगा’, ‘छत्रपति’, ‘एकलिंग का दीवान’ ऐतिहासिक उपन्यास; ‘मरीचिका’, ‘विवशता’, ‘लक्ष्मणरेखा’, ‘गांधी लौटे’ सामाजिक उपन्यास तथा ‘द्रौपदी की आत्मकथा’, ‘द्रोण की आत्मकथा’, ‘कर्ण की आत्मकथा’, ‘कृष्ण की आत्मकथा’, ‘गांधारी की आत्मकथा’ और ‘अभिशप्त कथा’ पौराणिक उपन्यास हैं। ‘पोस्टर उखड़ गया’, ‘मुंशी नवनीतलाल’, ‘महात्मा’, ‘दीक्षा’ कहानी-संग्रह हैं। ‘खूँटी पर टँगा वसंत’ कविता-संग्रह है, ‘उस पार का सूरज’ निबंध-संग्रह है।
सम्मान और अलंकरण : गोरखपुर विश्व-विद्यालय से डी.लिट. की मानद उपाधि। उ.प्र. हिंदी संस्थान का ‘लोहिया साहित्य सम्मान’, केंद्रीय हिंदी संस्थान का ‘सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार’, उ.प्र. सरकार का सर्वोच्च सम्मान ‘यश भारती’ एवं साहित्य के लिए म.प्र. सरकार का सर्वोच्च ‘मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’।
संपर्क : 382, बड़ी पियरी, वाराणसी।