₹200
प्रस्तुत कविता-संग्रह ‘दीपशिखा सा जीवन है’ श्री जयशंकर मिश्र की काव्य-यात्रा का षष्ठम सोपान है। इसमें कुल 56 नवीन रचनाएँ सम्मिलित की गई हैं। इससे पूर्व की रचनाएँ ‘यह धूप-छाँव, यह आकर्षण’, ‘हो हिमालय नया, अब हो गंगा नई’, ‘चाँद सिरहाने रख’, ‘बाँह खोलो, उड़ो मुक्त आकाश में’ एवं ‘बस यही स्वप्न, बस यही लगन’ हिंदी साहित्य-जगत् में अत्यधिक रुचि, उल्लास एवं गंभीरता के साथ स्वीकार की गई हैं।
श्री मिश्र की कविताओं में भाषा की सहजता, सरलता एवं सुगमता के साथ ही अंतर्निहित पारिवारिक एवं सामाजिक समरसता की महत्ता, युग-मंगल की कामना, जीवन के उद्देश्यों के प्रति सतत चिंतन तथा परिवेश की विविध जटिलताओं के बावजूद मानव जीवन को सौंदर्यमय एवं शिवमय बनाने की बलवती भावना रचनाकार को एक विशिष्ट पहचान देती है। अनेक रचनाओं में प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों के प्रति रचनाकार की संवेदनशीलता तथा तादात्म्य स्थापित करने का रुझान भी प्रतिबिंबित होता है।
वर्तमान कविता-संग्रह के प्रति डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के निम्न उद्गार महत्त्वपूर्ण हैं—
‘‘मैंने श्री जयशंकर मिश्र की कविताएँ पढ़ीं। ये एक संवेदनशील चित्त की भावाभिव्यक्तियाँ हैं, जो सागर के, प्रकृति के, परिवेश और परिवार के संबंध में हैं। कविता अपने बुनियादी रूप में कवि की भावाभिव्यक्ति ही होती है। मिश्रजी ने अपनी रागात्मक संवेदनाओं को छंदोबद्ध रूप में प्रस्तुत किया है, जिनमें उनकी स्मृति और प्रीति, वेदना और उल्लास तथा आशा और मंगलकामना व्यक्त हुई है। आशा है, पाठक इनका स्वागत करेंगे।’’
____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
अनुक्रम
प्रस्तावना —Pgs 7
अपनी बात —Pgs 13
आभार —Pgs 17
1. दीपशिखा सा जीवन है —Pgs 23
2. मिट्टी के सही, पर दीप जलें —Pgs 24
3. अथ कहाँ से करूँ —Pgs 26
4. जीवन की दो विधाएँ —Pgs 28
5. गीत लिता रहा —Pgs 30
6. जीवन के सघन गहन वन में —Pgs 32
7. जगमग दीप जले —Pgs 33
8. प्रणय-गान ही गाना —Pgs 34
9. हिमगिरि सा मन —Pgs 36
10. राहें नई नित बनाते रहे —Pgs 37
11. रहता यों अतृप्त अनवरत —Pgs 38
12. जो अप्राप्त, यों भाता है —Pgs 40
13. पुलकित साँझ देहरी आई —Pgs 41
14. नया आयाम, नई राह —Pgs 42
15. किसने सतरंगी रंग भरे —Pgs 44
16. जो सहज प्राप्त वह अर्थहीन —Pgs 45
17. मीत भी साक्ष्य भी —Pgs 46
18. स्नेह-प्यार के इस आँगन में —Pgs 47
19. निशिवासर प्रवहमान —Pgs 48
20. तुम नहीं जानते हो प्रियवर —Pgs 50
21. जन-जन पर छाई तरुणाई —Pgs 52
22. नित नेह-पुष्प बिराऊँगा —Pgs 53
23. जब दिवस हो सफल —Pgs 54
24. शुचिता की प्रतिमूर्ति —Pgs 55
25. दीपों का उत्सव —Pgs 57
26. नव-शदों के गीत सुनाऊँ —Pgs 58
27. प्रीति ही सृष्टि का मूल आधार है —Pgs 59
28. धुँधली स्मृतियों का साक्षी —Pgs 60
29. पुलकित प्रमुदित जीवन-कानन —Pgs 62
30. नीलिमा-नीलिमा का यह अद्भुत मिलन —Pgs 63
31. साँझ का कुहासा —Pgs 64
32. नव विहान की बात करें —Pgs 65
33. निज तन-मन एकाकार करें —Pgs 66
34. नि:सृत होती हिम-शृंगों से —Pgs 67
35. आह्लाद की मूर्ति है —Pgs 68
36. प्रीति की अला जगाएँगे —Pgs 69
37. मन अनमना हो जाता है —Pgs 70
38. नव गगन चाहिए —Pgs 72
39. स्वामित्व त्याग उपभोग करें —Pgs 73
40. प्रीति के गीत गाते रहे —Pgs 74
41. दिन दूनी रात चौगुनी हो —Pgs 76
42. श्रेय-प्रेय दोनों जीवन में —Pgs 77
43. मुझे मुत कर दो —Pgs 78
44. कभी जीत, कभी हार —Pgs 80
45. तुम तेज-पुंज हो शति-स्रोत —Pgs 81
46. वास्को डि गामा का अंतिम पड़ाव —Pgs 82
47. सागर तट का स्वर्णिम विहान —Pgs 84
48. परम ज्योति से दीप्तिमान —Pgs 85
49. हम कब पहचान पाते हैं —Pgs 86
50. अजब पहेली है जीवन —Pgs 88
51. ठहरो गतिमय जीवन! —Pgs 89
52. कौन टिकता है, कब सूर्य के सामने —Pgs 90
53. जाग्रत् जीवन —Pgs 91
54. तत्काल तिरोहित कर देती —Pgs 92
55. दिवस ईश-वंदन का —Pgs 93
56. किंचित् भी पश्चाप नहीं —Pgs 94
श्री जय शंकर मिश्र एक अत्यंत लोकप्रिय एवं कुशल प्रशासनिक अधिकारी के साथ-साथ अत्यंत संवेदनशील व्यक्ति एवं रचनाकार के रूप में भी जाने जाते हैं। उत्तर प्रदेश शासन एवं भारत सरकार के अनेक महत्त्वपूर्ण तथा चुनौतीपूर्ण दायित्वों का अत्यंत सजगता, क्षमता एवं कुशलता से निर्वहन करने के साथ-साथ संस्कृति एवं साहित्य की अनेक विधाओं में श्री मिश्र की अत्यधिक अभिरुचि है।
विभिन्न भाषाओं में लिखे जा रहे साहित्य के पठन-पाठन के अतिरिक्त भारतीय वाड.मय, उपनिषदों एवं दार्शनिक ग्रंथों के अध्ययन में उनकी गहरी अभिरुचि है। पूर्व में प्रकाशित चार काव्य-संग्रहों के अतिरिक्त श्री मिश्र की अंग्रेजी भाषा में ‘ए क्वेस्ट फॉर ड्रीम सिटीज’, ‘महाकुंभ : द ग्रेटेस्ट शो ऑन अर्थ’, ‘हैप्पीनेस इज ए चॉइस चूज टू बी हैप्पी’ एवं इसका हिंदी भावानुवाद ‘24×7 आनंद ही आनंद’ आदि प्रकाशित हो चुकी हैं। ये रचनाएँ भी सुधी पाठकों द्वारा अत्यधिक अभिरुचि एवं आह्लाद के साथ स्वीकार की गई हैं।