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Dekhan Mein Chhote Lagain   

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Author Mridula Sinha
Features
  • ISBN : 9788173153037
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Mridula Sinha
  • 9788173153037
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2010
  • 253
  • Hard Cover

Description

सागर में एक बूँद, समग्र भाषा के संगृहीत कोश में एक शब्द, भोजन में नमक। समग्र साहित्य में नमक की भूमिका अदा करेंगी ये लघुकथाएँ। परंतु एक चुटकी ही हुआ तो क्या, है तो नमक। आज जिसे सुनो वह समय की कमी की शिकायत करता है । पढ़ने-लिखने, मिलने-जुलने-यहाँ तक कि अपने से बात करने का भी समय नहीं है। ऐसे समयाभाव के युग में उपन्यास और बड़ी कहानियाँ लिखने के समय की कमी लेखिका के लिए है तो पढ़ने के लिए आपके लिए भी। इन लघुकथाओं में भरपूर सामर्थ्य है आपको रुलाने, गुदगुदाने, हँसाने और रोमांचित करने का। अधिकांश कथाएँ आपकी स्मृति में स्थायी स्थान बनाने के लिए आपके सम्मुख उपस्थित हैं। लोक-जीवन में प्रचलित दो-चार कथाएँ भी हैं; सिर्फ भोजन में नमक के बराबर।

The Author

Mridula Sinha

मृदुला सिन्हा 
27 नवंबर, 1942 (विवाह पंचमी), छपरा गाँव (बिहार) के एक मध्यम परिवार में जन्म। गाँव के प्रथम शिक्षित पिता की अंतिम संतान। बड़ों की गोद और कंधों से उतरकर पिताजी के टमटम, रिक्शा पर सवारी, आठ वर्ष की उम्र में छात्रावासीय विद्यालय में प्रवेश। 16 वर्ष की आयु में ससुराल पहुँचकर बैलगाड़ी से यात्रा, पति के मंत्री बनने पर 1971 में पहली बार हवाई जहाज की सवारी। 1964 से लेखन प्रारंभ। 1956-57 से प्रारंभ हुई लेखनी की यात्रा कभी रुकती, कभी थमती रही। 1977 में पहली कहानी कादंबिनी' पत्रिका में छपी। तब से लेखनी भी सक्रिय हो गई। विभिन्न विधाओं में लिखती रहीं। गाँव-गरीब की कहानियाँ हैं तो राजघरानों की भी। रधिया की कहानी है तो रजिया और मैरी की भी। लेखनी ने सीता, सावित्री, मंदोदरी के जीवन को खंगाला है, उनमें से आधुनिक बेटियों के लिए जीवन-संबल हूँढ़ा है तो जल, थल और नभ पर पाँव रख रही आज की ओजस्विनियों की गाथाएँ भी हैं।
लोकसंस्कारों और लोकसाहित्य में स्त्री की शक्ति-सामर्थ्य ढूँढ़ती लेखनी उनमें भारतीय संस्कृति के अथाह सूत्र पाकर धन्य-धन्य हुई है। लेखिका अपनी जीवन-यात्रा पगडंडी से प्रारंभ करके आज गोवा के राजभवन में पहुँची हैं।

 

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