₹500
लेखक की पूर्व में प्रकाशित पुस्तक, जिसका शीर्षक था ‘दिल्ली सरकार की शक्तियाँ और सीमाएँ : तथ्य और भ्रम’ में किए गए खुलासों के कारण ही राजधानी के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द हो गई थी।
लेखक का दावा है कि इस पुस्तक में किए गए खुलासे दिल्ली की राजनीति में खलबली मचाएँगे, पाठकों को बार-बार चौंकाएँगे, विधानसभा के पदाधिकारियों, अधिकारियों एवं विधायकों के एक वर्ग की रातों की नींद उड़ाएँगे, संविधान को ठेंगा दिखाकर सरकार में मंत्री स्तर की अवैध नियुक्तियाँ करनेवालों को अपनी गलती पर शर्म महसूस कराएँगे, अगले चंद दिनों में राजधानी की नीरस खबरों में कुछ चटपटापन लाएँगे तथा महज सूत्रों के हवाले से खबर देनेवाले मीडिया को अपने सूचना-तंत्र को और अधिक पैना बनाने का एहसास कराएँगे।
ऐसा होना इसलिए तय है, क्योंकि किए गए खुलासों का आधार कोई सूत्र नहीं, बल्कि वे प्रामाणिक तथ्य एवं दस्तावेज हैं, जिन्हें निर्वाचन आयोग द्वारा कोड़ा फटकारने पर दिल्ली सरकार को दबी हुई फाइलों से बाहर निकालने पर मजबूर होना पड़ा है।
__________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
अनुक्रम
भूमिका—5
याचिकाकर्ता की कलम से... 7
दिल्ली हाईकोर्ट का निर्देश—आयोग पुन: करे सुनवाई—11
प्रस्तावना—13
क. आम नागरिक के प्रश्नों के उत्तर—21
(i) क्या होता है संसदीय सचिव?
(ii) क्या काम करते हैं संसदीय सचिव?
(iii) क्या होता है लाभ का पद्?
(iv) संसदीय सचिव क्यों है लाभ का पद?
(v) सांसदों/विधायकों को लाभ के पद् की मनाही क्यों?
(vi) पहला संसदीय सचिव किसने बनाया और क्यों?
ख. 21 विधायक संसदीय सचिव नियुक्त—32
ग. संसदीय सचिवों को मिले अनेक लाभ (सुविधाएँ)—38
घ. याची द्वारा राष्ट्रपति को प्रस्तुत याचिका : रद्द हो सदस्यता—43
ङ. याचिका राष्ट्रपति भवन में, भूचाल दिल्ली सरकार में—55
च. राजनैतिक दलों में पक्षकार बनने की होड़—60
छ. प्रतिवादियों द्वारा दिया गया लिखित बयान तथा हलफनामा—65
ज. निर्वाचन आयोग में पक्ष-विपक्ष के तर्क—98
झ. याचिकाकर्ता की पासा पलट दलीलें : प्रतिवादी निरुत्तर—108
ञ. आयोग ने सौंपी रिपोर्ट : 20 विधायक अयोग्य घोषित—138
ट. विविध—148
(i) कैसे एक लेख से जन्मी याचिका
(ii) याचिकाकर्ता पर राजनैतिक दबाव
(iii) स्पीकर कार्यालय की संदिग्ध भूमिका
(iv) आयोग की गुगली : फँस गई सरकार
(v) किसने निपटाए ‘आप’ के 20?
अनुलग्नक-1 : संसदीय सचिव का पद : न वैधानिक न संवैधानिक—171
अनुलग्नक-2 : विभागों से आंतरिक पत्राचार —178
अनुलग्नक-3 : 69वाँ संविधान संशोधन अधिनियम—184
अनुलग्नक-4 : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन अधिनियम —189
अनुलग्नक-5 : ट्रांजेक्शन ऑफ विजनिस रूल्स 1993—219
अनुलग्नक-6 : कार्य आवंटन नियम 1991—238
एस.के. शर्मा
शिक्षा : राजनीति विज्ञान और कानून की शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से, विधान लेखन और विधि व्याख्या पाठ्यक्रम का उच्च प्रशिक्षण लंदन के रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्टे्रशन से।
कृतित्व : लोकसभा सचिव पद से सेवानिवृत्त, दिल्ली विधानसभा के शैशवकाल में चार मुख्यमंत्रियों, राजनिवास व वरिष्ठ नौकरशाही के विधायी सलाहकार रहे। नवनिर्मित विधानसभा की नींव डालने, नियमावली बनाने, विधायी प्रक्रिया तय करने, सदन पीठासीन अधिकारियों, सदस्यों एवं समितियों हेतु दिशा-निर्देश तय करने, पहली, दूसरी एवं तीसरी विधानसभा के विधायकों को प्रशिक्षण देकर राजधानी में नई पीढ़ी का नेतृत्व तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका। भारत के राष्ट्रपति व राज्यसभा सदस्यों के चुनाव में चुनाव अधिकारी, संसद् में आर.टी.आई. कानून के अंतर्गत अपीलीय अधिकारी व अनेक संसदीय शिष्टमंडलों के सचिव रहे।
रचना-संसार : दिल्ली की विधायिका एवं शासन प्रणाली पर हिंदी व अंग्रेजी में ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित। संसदीय सचिव लाभ का पद मामले में कानूनी सलाहकार। उच्च शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों में भारतीय संविधान, संसदीय प्रक्रिया, दिल्ली की संवैधानिक स्थिति आदि विषयों पर प्रशिक्षण प्राख्यान एवं भाषण देते हैं।
लगभग दो दर्जन देशों की यात्रा की।