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“मालकिन, जितनी ही विराट् आत्मा होती है, उतनी ही बड़ी बुभुक्षा भी होती है। मालिक-मालकिनों को हमेशा कम, मगर नौकर-चाकरों को हमेशा ज्यादा भूख लगती है। जितना बड़ा यज्ञकुंड होता है, उतनी ही ज्यादा समिधाएँ लगती हैं। जितना ही बड़ा जिंदगी में दु:ख का नरक कुंड होता है, उतना ही ज्यादा हाहाकार करता है, मालकिन! मुझे लगता है कि मैं पूर्वजन्मों में भी बड़ा भोजनभट्ट रहा होऊँगा और मैंने कल रात की तरह अपनी मालकिन की जूठन खा रखी होगी!” “मुझे तो लगता है, चोंचू चौबे, कि संन्यासी रामदास के पीछे-पीछे भी जो तू तीर्थ-तीर्थ भटकता रहा, उसके पीछे भी जूठे फलों का लोभ ही रहा होगा! ईश्वर और मुक्ति की खोज नहीं। संन्यासी लोग ज्यादातर सिर्फ फलाहार ही करते हैं न!” “झूठ क्यों बोलूँ, ज्ञानेश्वरी! चूकता मैं महात्मा रामदास के जूठे फल खाने में भी नहीं, क्योंकि मैं जानता हूँ कि जूठा अन्न या फलाहार ग्रहण करने से नहीं, बल्कि विचार और चरित्र की जूठन खाने से पतन होता है।...मगर महात्मा रामदास को क्या कहूँ, कि जहाँ-जहाँ फलाहार करते थे, बाकी बचे हुए टुकड़े और छिलकों को गड्ढा खोदकर उसमें दबा देते थे।”
—‘पुनर्जन्म के बाद’ से इस उपन्यासत्रयी में प्रसिद्ध साहित्य- कार शैलेश मटियानी के तीन लघु उपन्यास ‘डेरेवाले’, ‘दो बूँद जल’ तथा ‘पुनर्जन्म के बाद’ संकलित हैं। तीनों ही उपन्यास उनकी लेखन-शैली के अनुपम उदाहरण हैं। मनोरंजन से भरपूर और पाठक को सोचने पर मजबूर कर देनेवाली उपन्यासत्रयी।
जन्म : 14 अक्तूबर, 1931 को अल्मोड़ा जनपद के बाड़ेछीना गाँव में।
शिक्षा : हाई स्कूल तक।
शैलेश मटियानी का अभिव्यक्ति-क्षेत्र बहुत विशाल है। वे प्रबुद्ध हैं, अतः लोक चेतना के अप्रतिम शिल्पी हैं। श्रेष्ठ कथाकार के रूप में तो उन्होंने ख्याति अर्जित की ही, निबंध और संस्मरण की विधा में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। कृतित्व : तीस कहानी-संग्रह, इकतीस उपन्यास तथा नौ अपूर्ण उपन्यास, तीन संस्मरण पुस्तकें, निबंधात्मक एवं वैचारिक विषयों पर बारह पुस्तकें, लोककथा साहित्य पर दस पुस्तकें, बाल साहित्य की पंद्रह पुस्तकें। ‘विकल्प’ एवं ‘जनपक्ष’ पत्रिकाओं का संपादन।
पुरस्कार एवं सम्मान : प्रथम उपन्यास ‘बोरीवली से बोरीबंदर तक’ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत; ‘महाभोज’ कहानी पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘प्रेमचंद पुरस्कार’; सन् 1977 में उत्तर प्रदेश शासन की ओर से पुरस्कृत; 1983 में ‘फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ पुरस्कार’ (बिहार); उत्तर प्रदेश सरकार का ‘संस्थागत सम्मान’; देवरिया केडिया संस्थान द्वारा ‘साधना सम्मान’; 1994 में कुमायूँ विश्वविद्यालय द्वारा ‘डी.लिट.’ की मानद उपाधि; 1999 में उ.प्र. हिंदी संस्थान द्वारा ‘लोहिया सम्मान’; 2000 में केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा ‘राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार’।
महाप्रयाण : 24 अप्रैल, 2001 को दिल्ली में।