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Devgarh Ki Muskan (Kabhi Na Kabhi)   

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Author Vrindavan Lal Verma
Features
  • ISBN : 8173151911
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Vrindavan Lal Verma
  • 8173151911
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2015
  • 270
  • Hard Cover

Description

बुद्धा हाथ जोड़कर बोला, ' यह मेरी बहिन तिनकी हें और यह छोटा भाई मिट्ठू है । हम तीनों पहले मंदिर में फूल चढ़ाने के लिए गए थे, क्योंकि भगवान् बहुत बड़े हैं; परंतु पुजारियों ने नाहीं कर दी.. । '
' पुजारियों ने फूल चढ़ाने से नाहीं कर दी! कौन से मंदिरों के पुजारियों ने?' राजा ने आश्‍चर्य के साथ प्रश्‍न किया ।
तिनकी बोल पड़ी, ' विष्णु भगवान् के मदिरवालों ने, सबने- '
बुद्धा ने रोका, ' ठहर जा! बीच में मत बोल । ' और राजा को उत्तर दिया, ' महाराज, नगर के बड़े मंदिरों पर हम लोग गए । भीतर कहीं नहीं घुस पाए । '
राजा सोचने लगे-सहरियों के छुए ये फूल भी अपवित्र माने गए! हम इस दुराग्रह को मिटाकर रहेंगे । बाण से कैसे भी शत्रु को धराशायी कर सकते हैं तो क्या इस कुरीति को नहीं मिटा सकेंगे?. .बोले, ' हम विष्णु मंदिर में इन फूलों को चढ़ाने के लिए चलेंगे । ये तीनों साथ रहेंगे । ' उन्होंने उन सहरियो की ओर उँगली से संकेत किया । अनेक जनों को खटका-राजा क्या धर्माचार पर भी बाण चलाएँगे? राजा, रानियों और राजकुमारों ने हाथ-पैर धोकर सहरियों से फूल लिये और मंदिर के भीतर जाकर मूर्ति पर फूल चढ़ाए । राजा ने सहरियों को अंदर बुलाया । पुजारियों ने हाथ जोड़कर निषेध किया । राजा ने कहा, ' इनके छुए फूल भगवान् पर चढ़ा दिए तो ये क्यों नहीं भीतर आ सकते?'
- इसी उपन्यास से
महोबे के चंदेले राजाओं की तलवार का पानी तो इतिहास-प्रसिद्ध है ही, उनके द्वारा किए गए जनहित कार्यों की गाथा आज भी वहाँ के खंडहर कह रहे हैं । इसी इतिहास- प्रसिद्ध चंदेल वंश में पैदा हुए राजा विजयपालदेव की शस्त्र तथा शास्त्र में समान गति थी । उनके लोकहितकारी कार्यों की गाथा को आज भी देवगढ़ का किला अपनी मुसकानों में बिखेर रहा है ।

The Author

Vrindavan Lal Verma

मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।
ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्‍त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्‍ट‌ि प्रदान की ।
आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पद‍्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्‍वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्‍त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।

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