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"समाज उसी व्यक्ति को महान् मानता है, जो अपने कार्य व ध्येय में सफलता प्राप्त कर ले |
असफल व्यक्ति कितना भी ग़ुणवान व सक्षम क्यों न हो, वह न तो महान् माना जाएणा और न उसके बाद उसके साथ कोई अलौकिक व चामत्कारिक घटनाएँ ही जुड़ेंगी |
सफल विभूतियों के जीवनकाल में जो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटी थीं, वे निश्चय ही विशेष या अत्यधिक कठिन तो अवश्य थीं, परंतु असंभव नहीं थीं, बल्कि पूर्णतया विज्ञान-सम्मत एवं तर्क-सम्मत थीं | सूक्ष्म दृष्टि से परीक्षण करने पर उनका सराहनीय लौकिक रूप समझ में आने लगता है |
इस पुस्तक में दिए हुए तर्कसंगत मत पूर्णतया लेखक की अपनी कल्पना पर आधारित हैं, जिनमें अलौकिकता न होकर वास्तविकता का दिग्दर्शन मात्र ही है | यह पुस्तक हमारी श्रद्धा और आस्था के केंद्र देवी-देवताओं के अनुकरणीय, वंदनीय एवं पूजनीय जीवन के ऐसे दृष्टांत बताती है, जिन्हें पढ़कर उनके प्रति सम्मान और आदरभाव बढ़ जाता है| भक्ति, समर्पण और श्रद्धा जाग्रत् कर जीवन में संतोष व सार्थकता देनेवाली एक अनुपम कृति।.
जन्म : 6 अतूबर, 1929 को राजस्थान के कस्बा डीग में।
शिक्षा : एम.एससी. (भौतिक विज्ञान) आगरा कॉलेज, आगरा।
कृतित्व : पढ़ाई के उपरांत सरकारी सेवा में नियुति पाई, 28 वर्ष की सेवा में 6 पदोन्नतियाँ प्राप्त, अंत में पुलिस रेडियो सेवा के शीर्षस्थ पद ‘निदेशक’ से सेवानिवृत्ति के बाद शैक्षिक क्षेत्र में लगभग 17 वर्ष तक निजी संस्थानों में विभागाध्यक्ष तथा प्रोफेसर के पद पर नियुत रहे।
सम्मान : सेवा के दौरान सराहनीय सेवाओं हेतु राष्ट्रपति मेडल, मुयमंत्री का उत्कृष्ट सेवा का साइटेशन व पुरस्कार, एशियन गेम्स, 1982 के आयोजन में प्रशंसनीय योगदान हेतु मेडल एवं प्रशंसा-पत्र।
इंजीनियरिंग से संबंधित तीन पाठ्य पुस्तकें प्रकाशित। 81 वर्ष की आयु में ‘ऑडियो एवं वीडियो सिस्टम’ (हिंदी में), फिर ‘फूल काँटे’ पुस्तक लिखी, तत्पश्चात् ‘मनुस्मृति और आधुनिक समाज’, जो पाठकों के सम्मुख है।