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व्यंग्य अंततः सहारा देता है, हारे हुए आदमी को। ताव देनेवाले आदमी पर ताव खा जाता है। व्यंग्य देखता है कि धंधा क्या चल रहा है। इस लिहाज से ‘धंधे मातरम्’ एक पठनीय व्यंग्य-संग्रह है, जो सजी-धजी भाषा में नहीं है, बल्कि भाषा को नई सज-धज प्रदान करता है। पीयूष की अपनी शैली है, जिसमें वो व्यंग्य करते हैं। वर्तमान राजनीतिक माहौल में ‘अ’ से असहिष्णुता, ‘आ’ से आतंकवाद का नया ककहरा रचते हैं। यानी व्यंग्य को लेकर उनकी अलग दृष्टि है, जो पाठकों को आनंद देगी और सोचने के लिए विवश भी करेगी।
—अशोक चक्रधर
व्यंग्यकार एवं कवि
पीयूष पांडे को मैं कुछ साल से व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ। एक ब्लॉग लिखने के सिलसिले में पीयूष पांडे से मेरी मुलाकात आरंभ हुई थी और तब मुझे यह अहसास हुआ कि इनके भीतर एक व्यंग्यकार छिपा हुआ है, जो समय-समय पर बाहर आता रहता है। आजकल जब मैं इनके ट्वीट और फेसबुक पोस्ट पढ़ता हूँ तो मेरा अहसास और पुख्ता हो जाता है। पीयूष गंभीर-से-गंभीर विषय को बड़े व्यंग्यात्मक तरीके से पेश करते हैं और विषय से जुड़ी विसंगतियों और आक्रोश को बड़ी सहजता और व्यंग्यात्मक अंदाज में सामने लाते हैं। ‘धंधे मातरम्’ के लिए पीयूष को मेरी शुभकामनाएँ।
—मनोज बाजपेयी
अभिनेता
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अनुक्रम
लेकीय—7
1. धंधे मातरम्—15
2. अ से असहिष्णुता, आ से आतंकवाद—20
3. अच्छे दिन के इंतजार में—24
4. कॉल ड्रॉप के फायदे—26
5. लोकतंत्र की हत्या—28
6. न्यूज एंकर के लिए क्रैश कोर्स—30
7. एक डेंगू मच्छर से एसलूसिव बात—33
8. नागिन डांस बचाना है!—36
9. एक आशिक का घोषणा-पत्र—39
10. वर्तमान दौर में उल्लू—42
11. अपना-अपना कोहिनूर—44
12. शराबी समाज पर जुल्म—46
13. होली कन्हैया की हो ली...!—48
14. अस्पताल में सुंदरियाँ—52
15. बर्थडे फंड—55
16. पति खड़ा बाजार में—58
17. टीवीवाले बाबा कैसे बनें?—60
18. आइए सोचें—63
19. रेड लाइट एरिया का अनुभव—65
20. बाबा-पत्रकार संवाद—69
21. एक हारे हुए नेता की डायरी—72
22. किसिम-किसिम की चैरिटी—75
23. हिंदी-डे पर खड़ा कबीरा—77
24. को-को का फर्क—79
25. उफ! गरमी में चुनाव—82
26. संसद् में चाकू—लघु निबंध—85
27. एक भैंस की आत्मकथा—88
28. बड़ा दु:ख दीना मोबाइल ने... 91
29. एक आतंकवादी की डायरी—94
30. शौचालय-चिंतन—97
31. एक भावी नेता का इंटरव्यू—100
32. एक बँगला रहे न्यारा—103
33. वेलेंटाइन-डे उत्साही नौजवानों के लिए कुछ सुझाव—105
34. सैलरी बनाम धाँसू कैलेंडर का सवाल—107
35. कोई नहीं चाहता द्विपक्षीय र्वा!—109
36. सुन रहा है न तू!—111
37. बिजली कटौती के फायदे—114
38. ‘चार्ली’ का इंटरव्यू—117
39. सस्ती हवाई यात्रा का क्रैश कोर्स—120
40. कहीं आप सेल्फीबाज तो नहीं!—122
41. एक बयानबाज का इंटरव्यू—125
42. गालिब को भारत रत्न—127
43. वि वर्ष वाया र्मू दिवस —129
44. राजनीति में आर.टी.आई. 131
45. प्रधानमंत्री के नाम भावी मंत्री का खला इ-मेल—133
46. स्वच्छता-अभियान के खिलाफ—136
47. घोषणा-पत्र —139
48. मोरी अरज सुनो वि मंत्रीजी—141
49. कार, सरकार और सरोकार—144
50. रक्षाबंधन : लघु निबंध—146
51. कम नंबर के फायदे—148
52. लेकों के नाम खला खत—150
53. ‘पुतला फूँककों’ के नाम खला खत—153
54. एक अदद आविष्कार—156
पीयूष पांडे
शिक्षा : मास्टर ऑफ जर्नलिज्म और मास्टर ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट।
दैनिक जागरण, प्रभात खबर, दैनिक ट्रिब्यून, नई दुनिया जैसे अखबारों और कादंबिनी, अहा! जिंदगी जैसी बड़ी पत्रिकाओं के लिए नियमित व्यंग्य लेखन। दो व्यंग्य-संग्रह ‘छिछोरेबाजी का रिजोल्यूशन’ और ‘धंधे मातरम्’ प्रकाशित।
आज तक, ए.बी.पी. न्यूज, जी-न्यूज, सहारा समय और आई.बी.एन.-7 जैसे चैनलों में वरिष्ठ पद पर कार्य किया और जहाँ मौका मिला, वहाँ व्यंग्य संबंधी कार्यक्रमों के निर्माण में भी हाथ आजमाया। एक बड़े मनोरंजन चैनल पर जल्द प्रसारित होनेवाले कॉमेडी सीरियल ‘महाराज की जय’ के कुछ एपिसोड का लेखन भी।
‘ब्लू माउंटेस’ फिल्म में एसोसिएट डायरेक्टर रहा और सोशल मीडिया के विशेषज्ञ के रूप में भी पहचान है; मालूम है कि वायरल वीडियो की ताकत क्या होती है, इसलिए अब यू-ट्यूब तथा फेसबुक पर अपना एक व्यंग्य कार्यक्रम ‘सिट डाउन शो विद पीयूष पांडे’ शुरू किया है।
फिल्म निर्देशन का सपना है। देखते हैं, कब पूरा होता है!
संपर्क : 9873425196
इ-मेल : pandeypiyush07@gmail.com
ट्विटर : @pandeypiyush