₹350
‘‘कुबड़ी-कुबड़ी का हेराना?’’
‘‘सुई हेरानी।’’
‘‘सुई लैके का करबे?’’
‘‘कंथा सीबै!’’
‘‘कंथा सीके का करबे?’’
‘‘लकड़ी लाबै!’’
‘‘लकड़ी लाय के का करबे?’’
‘‘भात पकइबे!’’
‘‘भात पकाय के का करबे?’’
‘‘भात खाबै!’’
‘‘भात के बदले लात खाबे।’’
और इससे पहले कि कुबड़ी बनी हुई मटकी कुछ कह सके, वे उसे जोर से लात मारते और मटकी मुँह के बल गिर पड़ती। उसकी कुहनियाँ और घुटने छिल जाते, आँख में आँसू आ जाते और ओठ दबाकर वह रुलाई रोकती।
बच्चे खुशी से चिल्लाते, ‘‘मार डाला कुबड़ी को! मार डाला कुबड़ी को!’’
—इसी पुस्तक से
साहित्य एवं पत्रकारिता को नए प्रतिमान देनेवाले प्रसिद्ध साहित्यकार एवं संपादक श्री धर्मवीर भारती के लेखन ने सामान्य जन के हृदय को स्पर्श किया। उनकी कहानियाँ मर्मस्पर्शी, संवेदनशील तथा पठनीयता से भरपूर हैं। प्रस्तुत है उनकी ऐसी कहानियाँ, जिन्होंने पाठकों में अपार लोकप्रियता अर्जित की।
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अनुक्रम
भूमिका — 7
1. गुलकी बन्नो — 15
2. बंद गली का आखिरी मकान — 31
3. आश्रम — 75
4. यह मेरे लिए नहीं — 106
5. मुरदों का गाँव — 127
6. स्वर्ग और पृथ्वी — 130
7. चाँद और टूटे हुए लोग — 137
8. कुलटा — 148
9. हरिनाकुस और उसका बेटा — 154
10. एक बच्ची की कीमत — 161
11. धुआँ — 165
12. कफन-चोर — 171
13. नारी और निर्वाण — 175
14. मंजिल — 181
बहुचर्चित लेखक एवं संपादक
डॉ. धर्मवीर भारती 25 दिसंबर, 1926 को इलाहाबाद में जनमे और वहीं शिक्षा प्राप्त कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे। इसी दौरान कई पत्रिकाओं से भी जुड़े। अंत में ‘धर्मयुग’ के संपादक के रूप में गंभीर पत्रकारिता का एक मानक निर्धारित किया।
डॉ. धर्मवीर भारती बहुमुखी प्रतिभा के लेखक थे—कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध, आलोचना, अनुवाद, रिपोर्ताज आदि विधाओं को उनकी लेखनी से बहुत कुछ मिला है। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘साँस की कलम से’, ‘मेरी वाणी गैरिक वसना’, ‘कनुप्रिया’, ‘सात गीत-वर्ष’, ‘ठंडा लोहा’, ‘सपना अभी भी’, ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’, ‘बंद गली का आखिरी मकान’, ‘पश्यंती’, ‘कहनी-अनकहनी’, ‘शब्दिता’, ‘मानव-मूल्य और साहित्य’, ‘अंधा युग’ और ‘गुनाहों का देवता’।
भारतीजी ‘पद्मश्री’ की उपाधि के साथ ही ‘व्यास सम्मान’, ‘महाराष्ट्र गौरव’, ‘बिहार शिखर सम्मान’ आदि कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से अलंकृत हुए।
4 सितंबर, 1997 को मुंबई में देहावसान।