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कविता वही है, जो अपने सारे अर्थ खोले और फिर एक मौके पर कवि चुप हो जाए और पाठक बोले। कवयित्री आत्ममुग्धा चंचल नदी की तरह लिखती हैं। वह हमारे रास्ते में आनेवाली ऐसी मुश्किलों से घबराते हुए लोगों को संबल देती हैं, जो हर मोड़ पर घबराते हुए सौ-सौ बल खाने लगते हैं। हमारे जीवन की रातें कैसे हवा के परों पर सवार होकर पँखुडि़यों की सरगम पर राग-अनुराग सुनाती हैं और फिर सोचती हैं कि किस विधि मन की बात लिखूँ! सामाजिक सरोकारों से उपजे आवेगों का कवितांतरण करने में कवयित्री देर नहीं लगातीं। गली के मोड़ पर लहराता इश्तहार देखकर वह बाजार और विज्ञापन के जहर को रोकना चाहती हैं। आधुनिक समाज में वृद्धों की उपेक्षा और अपमान देखकर उनका मन भीगता है और आँखें रिसने लगती हैं।
कविता को उस अवसान के द्वार पर भी देखा जाए। शब्दों की आग को परखा जाए और उस कैनवस में इरादों की कालिख हटाकर आँखों की लाली से कुछ और ऐसा कहा जाए, जो कुंठाओं के मकड़जाल से मुक्त करे। इतिहास, पुराण, प्रकृति, हवा, प्रतीक्षा और कहना है, उसी लक्ष्मण रेखा के अंदर, जिसको हम कहते हैं—रचना-प्रक्रिया।
शिखाजी की कविताओं में संबंधों के ऐसे बुने-अधबुने नाजुक रेशे हैं, जो शायद पाठकों के पास भी हों, फिर भी कवयित्री आपको आपकी ही सौगात सौंप रही है। ऐसी कविताएँ, जो पाठकों के मन-प्राण को आह्लादित करेंगी।
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अनुक्रम | |
संबंधों के नाजुक रेशे — Pg. 7 | 33. ये सच ही क्यूँकर — Pg. 70 |
पाठकों और श्रोताओं की कसौटी — Pg. 13 | 34. गुज़श्ता दिनों की निशानी हुए — Pg. 71 |
अपनी बात — Pg. 15 | 35. उदास होने का सबब |
1. क्यूँ — Pg. 19 | सोचती हूँ — Pg. 72 |
2. नए-पुराने की जंग — Pg. 21 | 36. शहर के आईने बड़े बीमार निकले — Pg. 73 |
3. मेरे शहर के रास्ते — Pg. 22 | 37. भावों के निर्झर — Pg. 74 |
4. वो... — Pgs 23 | 38. ख्वाहिश की झील — Pg. 75 |
5. उलटे दीये को रोशनी... 24 | 39. मुझ तक ही आ पाती नहीं — Pg. 77 |
6. कवि होना — Pg. 25 | 40. इनकार का सौदा — Pg. 79 |
7. प्रश्न — Pg. 26 | 41. अवसान के द्वार पर — Pg. 81 |
8. मन को उपवन कर लो — Pg. 28 | 42. शब्द आग-आग हैं — Pg. 83 |
9. नारी फिर तुम आग बनो — Pg. 30 | 43. एक कविता लिखनी है मुझे — Pg. 85 |
10. इंतज़ार में — Pg. 32 | 44. कैनवस — Pg. 87 |
11. रे मन — Pg. 33 | 45. इतिहास — Pg. 89 |
12. कभी सुनी थी — Pg. 35 | 46. हवाओं को नहीं होता सरोकार — Pg. 91 |
13. नव-युग की मज़बूरी — Pg. 36 | 47. भुला दी गई लड़की — Pg. 93 |
14. दीपावली — Pg. 37 | 48. प्रतीक्षारत प्रश्न — Pg. 94 |
15. किरदार — Pg. 39 | 49. लक्ष्मण रेखा के भीतर — Pg. 95 |
16. इक मोड़ पर — Pg. 41 | 50. होगी तब दीवाली — Pg. 96 |
17. चाँद के लिए — Pg. 42 | 51. संबंधों के रेशे — Pg. 97 |
18. ओ मिट्टी के मानुस — Pg. 44 | 52. सूर्यास्त — Pg. 99 |
19. तुम बिन — Pg. 46 | 53. क्या है ये — Pg. 101 |
20. इंसां का कहर — Pg. 48 | 54. साँकल — Pg. 102 |
21. भुलावा — Pg. 50 | 55. लक्ष्य के पार — Pg. 104 |
22. बावरा मन — Pg. 52 | 56. कौन किसे समझाए — Pg. 106 |
23. दर्द क्यूँ छलका — Pg. 53 | 57. संबंधों की धुरी — Pg. 108 |
24. अपनी फितरत बदल पाएगा क्या — Pg. 54 | 58. कहीं भीतर — Pg. 110 |
25. धूप का टुकड़ा तेरा है — Pg. 55 | 59. बाज़ार — Pg. 112 |
26. शुभ-प्रभात — Pg. 57 | 60. पतझर के प्रतीक — Pg. 114 |
27. चंचल नदी — Pg. 59 | 61. बंदिनी — Pg. 116 |
28. हमारी रातें — Pg. 61 | 62. छल — Pg. 118 |
29. रास्ते — Pg. 63 | 63. मेरा ठौर — Pg. 120 |
30. नारी ही न रहने पाई कभी मैं — Pg. 65 | 64. अनावश्यक गाँठ — Pg. 122 |
31. किस विध मन की बात लिखूँ — Pg. 67 | 65. प्रेम-पथिक — Pg. 124 |
32. एक प्रश्न — Pg. 69 | 66. पतझर हो गया बसंत कैसे — Pg. 125 |
जन्म : 21 नवंबर।
शिक्षा : एम.एससी. (होम साइंस)।
प्रकाशन : सरिता, गृहशोभा, मनोरमा एवं अन्य पत्र-पत्रिकाओं में लेख/व्यंग्य एवं कविताओं का प्रकाशन।
विशेष : आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों से काव्य पाठ।
प्रख्यात गायकों एवं संगीतकारों द्वारा गीतों पर आधारित एल्बम जारी।