जिस ध्वनि से जीवन बना, आज वही जीवन का अंत करने पर आमादा है। क्यों? इस पुस्तक में ध्वनि के विभिन्न रूपों तथा वर्तमान समय में बढ़ते ध्वनि प्रदूषण, उसके दोष और उपचारों का सरल भाषा में वर्णन किया गया है।
आज का मानव कर्णकटु ध्वनि के बीच जी रहा है। मोटर और रेलगाडि़यों का शोर, जेट वायुयानों का शोर, मंदिर-मसजिद और सभा-सोसाइटियों में ध्वनि विस्तारक यंत्रों का शोर, टी.वी.-टेपरिकार्डर का शोर मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं। बहरेपन से लेकर हार्ट अटैक तक की बीमारियाँ इन्हीं ध्वनि प्रदूषणों का परिणाम हैं। जो ध्वनि जीवन के लिए अत्यावश्यक है, वही आज प्रदूषित होकर जीवन का अंत करने पर आमादा है। इस प्रदूषण के लिए कौन-कौन से कारण जिम्मेदार हैं तथा इससे मुक्ति कैसे मिल सकती है, इसी का वैज्ञानिक विवेचन सरल-सुबोध भाषा में इस पुस्तक में किया गया है। स्थान-स्थान पर दिए गए चित्र विषय को समझने में उपयोगी सिद्ध होंगे।
जोधपुर में जनमे विज्ञान की उच्चतम शिक्षा प्राप्त, देश-विदेश की दस लब्ध-प्रतिष्ठ विज्ञान-संस्थाओं के चयनित फेलो, रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री, लंदन से चार्टर्ड केमिस्ट की सम्मानोपाधि प्राप्त देश के वरिष्ठ विज्ञान संचारक। विगत 38 वर्षों से हिंदी में विज्ञान-लेखन और विज्ञान लोकप्रियकरण में रत डॉ. दुर्गादत्त ओझा की पुरातन एवं अद्यतन विज्ञान विषयों पर हिंदी में 50 से अधिक कृतियाँ, सहस्राधिक विज्ञान आलेख एवं शताधिक शोध-पत्र प्रकाशित हैं।
भूजल विभाग जोधपुर के अवकाश प्राप्त वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. ओझा को अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों एवं सम्मानोपाधियों से अलंकृत किया गया है, जिनमें प्रमुख हैं—राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान पुरस्कार, राष्ट्रीय विज्ञान-संचार पुरस्कार, राष्ट्रीय ग्रामीण साहित्य पुरस्कार, महामहिम राष्ट्रपति से डॉ. आत्माराम पुरस्कार, मेदिनी पुरस्कार आदि। डॉ. ओझा देश-विदेश की अनेक विज्ञान-संस्थाओं से जुड़े हुए हैं तथा विज्ञान विषयक कई पत्रिकाओं एवं शोध-जर्नलों के संपादक मंडल के सदस्य हैं।