Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Divya Bhagwadgita Atma Se Parmatma Tak   

₹900

Out of Stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Ashok Agrawal
Features
  • ISBN : 9789387980143
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Ashok Agrawal
  • 9789387980143
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2018
  • 488
  • Hard Cover

Description

श्रीमद्भगवद्गीता के अतुलनीय महत्त्व के कारण विश्व की 75 विदेशी भाषाओं सहित लगभग 82 भाषाओं में इसका रूपांतरण हो चुका है तथा सहस्रों टीकाएँ इस पर लिखी जा चुकी हैं। तो फिर इस एक और टीका की आवश्यकता क्यों पड़ी? जिन-जिन विद्वानों के मन में त्रिगुणमयी प्रकृति के गुणों से जन्य जैसा भाव उनके अंतःकरण व बुद्धि में रहा, उसके अनुरूप ही उन्होंने ‘गीता’ को अपने शब्दों में सँजोकर अपनी-अपनी कृतियों में उड़ेल दिया है। इसीलिए ‘गीता’ में भगवान् श्रीकृष्ण का एक निश्चित मत होते हुए भी भिन्न-भिन्न विद्वानों की कृतियों में नाना प्रकार से मतों की विभिन्नता दिखाई पड़ती है, जो कि स्वाभाविक ही है। भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए उपदेशों में जो सारगर्भित निश्चित मत अंतर्निहित है, उसी को स्वरूप देने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है।
परमात्मा के दिव्य अमृत वचनों के रहस्य तो परमगुह्य, अकथनीय, विशद एवं अलौकिक हैं। प्रस्तुत कृति आधुनिक युग के मानव को शोक, संत्रास, अतृप्त तृष्णाओं के उद्वेगों से मुक्ति दिलाकर शाश्वत सच्चिदानंद परमात्मा के सायुज्य में लाने का एक विनम्र प्रयास है।__________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रम

प्राक्कथन —Pgs. 5

प्रथम खंड

प्रवेशिका —Pgs. 11

द्वितीय खंड

अथ प्रथमोऽध्यायः

मोह ही विषाद का मूल —Pgs. 55

अथ द्वितीयऽध्यायः

मैं कौन? जीव व कर्म का स्वरूप —Pgs. 84

अथ तृतीयोऽध्यायः

कर्म का नहीं, काम का त्याग आवश्यक —Pgs. 130

अथ चतुर्थोऽध्यायः

कर्म में भावना महत्त्वपूर्ण —Pgs. 155

अथ पञ्चमोऽध्यायः

कर्म करने की युक्ति —Pgs. 184

अथ षष्ठोऽध्यायः

अनुभव को आचरण में ढालने का कौशल —Pgs. 199

अथ सप्तमोऽध्यायः

सर्वत्र परम तत्त्व ही व्याप्त —Pgs. 222

अथा‍ष्टमोऽध्यायः

भगवद्-प्राप्ति ही एकमात्र साधन —Pgs. 239

अथ नवमोऽध्यायः

परम गुह्य‍ ज्ञान-अनन्य भक्ति व शरणगति —Pgs. 257

अथ दशमोऽध्यायः

परमात्मा की विभूतियाँ व ऐश्वर्य  —Pgs. 279

अथैकादशोऽध्यायः

विराट् स्वरूप स्वयमेव शाश्वत सत्ता का प्रमाण —Pgs. 300

अथ द्वादशोऽध्यायः

अनन्य प्रेम व समर्पण ही परममुक्ति का द्वार —Pgs. 323

अथ त्रयोदशोऽध्यायः

परमात्मा में ही आनंद की प्राप्ति संभव —Pgs. 336

अथ चतुर्दशोऽध्यायः

स्वधर्म की सही पहचान —Pgs. 356

अथ पञ्चदशोऽध्यायः

जीव, जगत् एवं जगदीश्वर —Pgs. 369

अथ षोडशोऽध्यायः

दैवी व आसुरी प्रवृत्तियों का संयमन —Pgs. 382

अथ सप्तदशोऽध्यायः

साम्य व संतुलन ही सृष्टि का मूल —Pgs. 396

अथाष्टादशोऽध्यायः

निःसंग भाव से प्रभु शरण ही मोक्ष का आधार —Pgs. 414

तृतीय खंड

गीता के दिव्य रहस्य-निष्‍कर्ष —Pgs. 469

The Author

Ashok Agrawal

अशोक अग्रवाल भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं, जो उत्तर प्रदेश/ उत्तराखंड में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्यरत रहे हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक की डिग्री; मोतीलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (MONIRBA) से एम.बी.ए. में स्नातकोत्तर तथा एल-एल.बी. की डिग्रियाँ प्राप्त कीं। 
इ-मेल: ashokagrawal09@rediffmail.com

 

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW