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यदि जीवन को सार्थक बनाना है, तो जीना सीखना होगा। जब हमें जीना है, तो हमें कर्मशील होना होगा। जब हमें कर्म करना अनिवार्य है, तो हमें हर क्षण अपना रास्ता चुनना होगा। रास्ता कौन सा चुना जाए, उसे आँकने के लिए हमारे पास, हमारे अंतःकरण में कुछ मापदंडों का होना अनिवार्य है कि किन-किन बातों को, किन-किन चीजों को, किन-किन लोगों को हम महत्त्व देते हैं और किनको हम कम महत्त्व देते हैं अथवा कौन हमारे लिए बिल्कुल ही महत्त्वहीन है।
कुछ मौलिक मूल्यों का अंकन करके, उनको अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना ही पड़ेगा। उन मूल्यों को सहजने से ही जीवन रसमय बनेगा, परम सुख का अनुभव होगा तथा सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह होगी कि उन मूल्यों को निर्धारित करने के उपरांत अपने दैनिक जीवन में कब, कहाँ, कैसे, क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, इसका तत्काल निर्णय लेने की एक अद्भुत क्षमता अपने अंदर विकसित हो जाएगी। यदि उन मूल्यों को, प्रलोभन, भय अथवा आलस्य के कारण छोड़ देते हैं, तो सारा जीवन ही सारहीन, निर्मूल सा बनकर रह जाता है, एक बोझ सा हो जाता है, जिसे ढोना स्वयं में एक अजीब समस्या बन जाती है।
—इसी पुस्तक से
इस पुस्तक में जीवन को संस्कारवान बनाने और उसे सही दिशा में ले जाने के जिन सूत्रों की आवश्यक्ता है, उनका बहुत व्यावहारिक विश्लेषण किया है। लेखक के व्यापक अनुभव से निःसृत इस पुस्तक के विचार मौलिक और आसानी से समझ में आनेवाले हैं।
जीवन को सफल व सार्थक बनाने की प्रैक्टिकल हैंडबुक है यह कृति।
स्वर्गीय रायबहादुर महाबीरसिंह सिंहल के सात पुत्रों में पाँचवें। बाल्यकाल में एक असाधारण स्काउट और सर्वांगीण सर्वोत्कृष्ट छात्र के नाते इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सन् 1954-55 सत्र के एकमात्र चांसलर्स पदक विजेता। यहीं से फिजिक्स में एम.एस-सी. और एल-एल.बी. की उपाधियाँ पाईं। सन् 1955 में आई.पी.एस. में चुने गए। उत्तर प्रदेश में नियुक्ति हुई। पुलिस अधीक्षक, आई.जी. पुलिस, प्रशिक्षण विद्यालय के प्रधानाचार्य जैसे पदों पर कार्य करते हुए भारत सरकार में अतिरिक्त गृह सचिव तथा महानिदेशक नागरिक सुरक्षा के महत्त्वपूर्ण पद से सेवा-निवृत्त हुए। अपने अनुकरणीय जीवन से असंख्य पुलिस अधिकारियों के आदर्श बने। दस्यु-उन्मूलन, अदम्य साहस, वीरता तथा सराहनीय सेवाओं के लिए राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित। सेवा-निवृत्ति के बाद केंद्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष नियुक्त हुए। वर्ष पर्यंत त्याग-पत्र देकर राजनीति में प्रवेश। राजनीति करने नहीं, राजनीति के क्षेत्र में चरित्रवान, प्रतिष्ठित लोगों के पुनरागमन को प्रेरित करने के लिए।
अपने सेवाकाल में दस हजार कॉलेज और यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों एवं प्राध्यापकों के अलावा आई.पी.एस., आई.ए.एस. तथा राज्यों की प्रशिक्षण संस्थाओं एवं विदेश में लेक्चर देते रहे हैं। इन वार्त्ताओं को सुनने पर श्रोता एक ऐसी दुनिया में पहुँच जाते हैं, जहाँ प्रकाश-ही-प्रकाश है।