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आधुनिक दोहा शिल्प और आकार में पारंपरिक होकर भी अपने कथ्य और संवेदन में अत्यंत अर्वाचीन और तरोताजा है, जो समकालीन हिंदी कविता के यथार्थ रूपों और उसकी संवेदना को पकड़ने में सक्षम है। डॉ. दिनेश चन्द्र अवस्थी दोहा छंद के एक समर्थ एवं सशक्त हस्ताक्षर हैं। ईश्वर, धर्म, दर्शन, परिवार, पत्नी, बच्चे, माता-पिता, घर, गली, शहर, कार्यालय, पशु-पक्षी, राजनीति, व्यंग्य, अवसरवादिता, न्याय, मक्कारी, भ्रष्टाचार, मनोविकार, देशभक्ति, आतंक, अफसर, नेता, श्रमजीवी, जीवन, नीति, व्यवहार, सिद्धांत, प्रेम, मित्रता, विश्वजनीन घटनाएँ और चिंतन को जिस मानवीय दृष्टिकोण से डॉ. अवस्थीजी ने देखने का यत्न किया है, वह सब छोटे-छोटे सांस्कृतिक चित्रों के रूप में सहज ही मन को विमुग्ध करती है। डॉ. अवस्थी के दोहे अभिधा की नींव पर प्रतिष्ठित होते हुए भी लाक्षणिकता के सोपानों पर आरूढ़ होते हुए व्यंजना की ऊँचाइयों को सहज ही संस्पर्श करते हैं।
डॉ. दिनेश चन्द्र अवस्थीजी द्वारा विरचित प्रस्तुत कृति ‘दोहा-वल्लरी’ सुधी साहित्यकारों, विचारकों एवं सहृदयों के मध्य लोकप्रिय एवं समादृत होगी।
जन्म : 15 अगस्त, 1951, ग्राम- अवस्थी पुरवा, जिला—लखीमपुर-खीरी (उ.प्र.)।
शिक्षा : एम.ए. (इतिहास), एम.ए. (हिंदी अनुवाद), एल-एल.बी., पी-एच.डी.।
प्रकाशन : दिनेश की कुंडलियाँ 1996, सामयिक कुंडलियाँ 1999, भावांजलि (गीतिका संग्रह) 2001, एहसास की खुशबू (फरसी लिपि में लिप्यंतरित कविताएँ) 2010, कवि प्रदीप का हिंदी साहित्य में अवदान 2010, व्यंग्य बाण 2014, पद्यात्मक सूक्ति कोष 2018।
विशेष : वर्ष 1999 में राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान (उ.प्र.) की स्थापना की, जिसके आप महामंत्री हैं। संस्थान के माध्यम से राज्य कर्मियों को प्रतिवर्ष एक-एक लाख रुपए के चौबीस पुरस्कार दिए जाते हैं। संस्थान द्वारा प्रायोजित आधे घंटे का एक कविता पाठ का कार्यक्रम ‘साहित्य सरिता’ डी.डी.यू.पी. पर प्रसारित हो रहा है, जिसके 113 एपीसोड प्रसारित हो चुके हैं एवं ‘अपहिर्य’ नामक त्रैमासिकी बीस वर्षों से प्रकाशित हो रही है।
संप्रति : अधिवक्ता, सेवानिवृत्त विशेष सचिव एवं वित्त नियंत्रक, विधान सभा (उ.प्र.) लखनऊ।