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तेज रफ्तार जिंदगी में लोगों को अपना वजूद बचाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। जीवन की महत्त्वाकांक्षाएँ उफान पर हैं। माता-पिता की बच्चों से और बच्चों की माता-पिता से उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं। पारिवारिक रिश्तों में भावनात्मक सहयोग एवं प्यार की कमी आ गई है। पति-पत्नी के संबंधों में अहं आ गया है। सात जन्मों का रिश्ता सात दिनों का होने लगा है। तलाक की घटनाएँ बढ़ गई हैं। युवा वर्ग एवं किशोर दिग्भ्रमित हो रहे हैं। मानसिक तनाव एवं आत्महत्या की घटनाओं ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया है। भले ही हम इंटरनेट की दुनिया में जी रहे हैं, लेकिन व्यावहारिक दुनिया से कटते जा रहे हैं। नकारात्मक मनोभाव हमारे मन में घर करते जा रहे हैं। बच्चे, किशोर, युवा, बुजुर्ग सभी के व्यवहार में आक्रामकता आ गई है। धैर्य कम हो गया है। हर व्यक्ति किसी-न-किसी तरह मानसिक रूप से परेशान है। प्रस्तुत पुस्तक में इन बातों को ध्यान में रखकर सरल भाषा में बच्चों, किशोरों, युवा एवं बुजुर्ग को जागरूक करने की कोशिश की गई है कि वे खुद को इतना मजबूत रखें कि छोटी-छोटी परेशानियाँ उन्हें विचलित न कर सकें।
मनोविकारों और मनोरोगों को दूर कर जीवन में सकारात्मक भाव जाग्रत् कर जीने का आनंद उठाने की राह दिखाती पठनीय पुस्तक।
पटना में पली-बढ़ी डॉ. बिंदा सिंह ने स्नातक की पढ़ाई पटना वीमेंस कॉलेज से की। एम.ए., एम.डी., पी.जी.डी.सी.पी. एवं क्लीनिक-साइकोलॉजी में पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त। पिछले दो दशक से साइकोथेरैपी (Psychotherapy) एवं काउंसिलिंग के क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं।
समाज को नई दिशा देने के उद्देश्य से विगत एक दशक से अनेक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिकों में इनके स्तंभ नियमित रूप से प्रकाशित हो रहे हैं। समसामयिक विषयों पर भी लेख एवं विचार राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में छपे हैं।
संप्रति डिस्ट्रिक्ट लीगल ऐड-कम-कंसीलिएशन की सदस्य हैं। दूरदर्शन, महिला हैल्पलाइन यू.एन.डी.पी. बिहार सरकार (कल्याण) से जुड़ी हैं। पटना के प्रतिष्ठित स्कूल एवं संस्थाओं में निःशुल्क प्रशिक्षण एवं काउंसिलिंग के माध्यम से समाजसेवा कर रही हैं।