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डॉ. राधाकृष्णन का जन्म एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में 5 सितंबर, 1888 को तिरुत्तनि, मद्रास (अब चेन्नई) में हुआ था। पारिवारिक निर्धनता के कारण राधाकृष्णन की सारी पढ़ाई छात्रवृत्ति के सहारे हुई। दर्शन उनका प्रिय विषय था। बी.ए. और एम.ए. उन्होंने इसी विषय में किए।
सन् 1909 में एम.ए. करने के बाद राधाकृष्णन मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में सहायक लेक्चरर बन गए। उपनिषद्, भगवद्गीता, ब्रह्मसूत्र आदि हिंदू ग्रंथों में उन्हें महारत हासिल थी। शंकर, रामानुज और माधव पर उनकी टिप्पणियाँ अकाट्य होती थीं। उन्होंने बौद्ध और जैन दर्शन के साथ-साथ पश्चिमी विचारकों प्लेटो, प्लोटिनस, कांट, ब्रैडले और बर्गसन का गहन अध्ययन किया।
सन् 1931 में उन्हें आंध विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया। 1939 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में कुलपति नियुक्त हुए। 1946 में यूनेस्को का राजदूत बनाया गया। स्वतंत्रता के बाद उन्हें विश्वविद्यालय शिक्षा का अध्यक्ष बनाया गया। 1948 में वे सोवियत संघ में भारत के राजदूत नियुक्त हुए। 1952 में वे देश के उपराष्ट्रपति बने। 1954 में उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। वे दो बार देश के उपराष्ट्रपति और 1962 में राष्ट्रपति बनाए गए।
अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण 40 वर्ष उन्होंने शिक्षक के रूप में बिताए। उनकी मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाए तो समाज की अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने जो अमूल्य योगदान दिया, वह निश्चय ही अविस्मरणीय रहेगा। उनका जन्म-िदवस ‘िशक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
प्रस्तुत है उच्च कोटि के दार्शनिक, समाज का सम्यव्Q मार्गदर्शन करनेवाले अनन्य समाज-सुधारक की पठनीय एवं प्रेरणादायक जीवनी।
बृज किशोर बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े हैं। लेखन इनका शोक है। दिल्ली विश्व-विद्यालय से वाणिज्य में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। एक सफल जीवनीकार के रूप में पहचान। निरंतर पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित। लेखन की श्रृंखला में यह इनकी आठवीं कड़ी है।