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प्रस्तुत पुस्तक बिहार के अपेक्षाकृत पिछड़ेपन के कारणों को जानने के लेखक की अनुसंधानात्मक चेष्टा का परिणाम है। आखिर अकूत भौतिक संपदा तथा गौरवपूर्ण सांस्कृतिक विरासत वाले इस प्रदेश की दशा इतनी चुनौतीपूर्ण क्यों रही है? और इन संदर्भों में नेतृत्व परिणाम के अध्ययन हेतु डॉ. श्रीकृष्ण सिंह, जो लगभग 17 वर्षों तक बिहार के प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री पद पर कायम रहे, स्वाभाविक चुनाव के रूप में उभरते हैं। यह सत्य है कि डॉ. सिंह बिहार को अत्यंत कठिन समय में राजनीतिक-प्रशासनिक नेतृत्व देने में सफल रहे; परंतु उनकी कुछ प्रगतिशील नीतियों की (विशेषतः जमींदारी उन्मूलन!) तार्किक परिणति नहीं हो पाई और वे आधे-अधूरे ही रहे।
डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के अवदान को रेखांकित करती बिहार के विकास-क्रम की बानगी देती पुस्तक।
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अनुक्रम
प्रस्तावना — Pgs. 5
1. डॉ. श्रीकृष्ण सिंह और उनका समाजीकरण — Pgs. 9
2. बिहार में प्रथम कांग्रेस मंत्रिमंडल तथा डॉ. सिंह का नेतृत्व — Pgs. 28
3. डॉ. सिंह पुनः बिहार के राजनीतिक-प्रशासनिक शीर्ष पर — Pgs. 59
4. बिहार में जमींदारी उन्मूलन और डॉ. सिंह : कितना सारपूर्ण? — Pgs. 89
5. डॉ. सिंह का व्यक्तित्व एवं उसके विभिन्न पक्ष — Pgs. 111
6. निष्कर्ष — Pgs. 133
परिशिष्ट
प्राथमिक स्रोत — Pgs. 142
पूरक स्रोत — Pgs. 155
पटना महाविद्यालय, पटना एवं हंसराज कॉलेज, दिल्ली में शिक्षा प्राप्त नरेंद्र कुमार पांडेय संप्रति दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद महाविद्यालय में इतिहास विषय में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।
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