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डॉ श्यामाप्रसाद मुकर्जी ने अपना सार्वजनिक जीवन शिक्षाविद् के रूप में आरंभ किया। कलकत्ता विश्वविद्यालय के वे उपकुलपति रहे। तदुपरांत उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। बंगाल की प्रांतीय राजनीति में मुस्लिम लीग की सांप्रदायिकता से टक्कर ली, हिंदू महासभा के नेता के रूप में हिंदुओं के न्यायोचित हितों और अधिकारों का समर्थन किया और कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति का विरोध किया, राष्ट्रीय स्वातंत्र्य आंदोलन में भाग लेकर भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया, देश का विभाजन होने की अपरिहार्य स्थिति उत्पन्न हो जाने पर बंगाल का विभाजन करवाया और बंगाल के बड़े हिस्से को पाकिस्तान में जाने से बचा लिया। आजादी के बाद उन्होंने नेहरू मंत्रिमंडल में उद्योग मंत्री के रूप में भारत के औद्योगिक विकास की नींव रखी और पूर्वी पाकिस्तान के हिंदुओं के उत्पीड़न और निष्क्रमण के मुद्दे पर नेहरू की नीतियों से असहमत होकर केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। राजनीति में कांग्रेस के राष्ट्रीय विकल्प की आवश्यकता अनुभव कर भारतीय जनसंघ की स्थापना की। कश्मीर के प्रश्न पर डॉ. मुकर्जी ने शेख अब्दुल्ला की अलगाववादी नीतियों का विरोध किया; धारा 370 की समाप्ति तथा जम्मू-कश्मीर केभारतमेंपूर्णविलयकेलिएआंदोलनकियाऔर अपनेजीवनकाबलिदानदिया।कश्मीर काप्रश्नअभीभीअनसुलझा ही है। प्रस्तुत पुस्तक में वर्णित डॉ. मुकर्जी का कर्तृत्व इस अनसुलझे प्रश्न के समाधान की दृष्टि प्रस्तुत करता है।
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अनुक्रम
प्रस्तावना — Pgs. 5
1 राजनीति में प्रवेश से पूर्व का डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी का संक्षिप्त जीवन-वृत्त — Pgs. 11
2 श्यामाप्रसाद मुकर्जी : शिक्षाविद् — Pgs. 26
3 बंगाल की प्रांतीय राजनीति और डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी — Pgs. 36
4 बंगाल का अकाल और डॉ. मुकर्जी — Pgs. 49
5 हिंदू महासभा और डॉ. मुकर्जी — Pgs. 52
6 राष्ट्रीय राजनीति और डॉ. मुकर्जी — Pgs. 84
7 डॉ. मुकर्जी केंद्रीय मंत्री के रूप में — Pgs. 104
8 पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं का उत्पीड़न और डॉ. मुकर्जी का नेहरू मंत्रिमंडल से त्यागपत्र — Pgs. 109
9 डॉ. मुकर्जी और भारतीय जनसंघ — Pgs. 115
10 कश्मीर समस्या की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि — Pgs. 120
11 शेख अब्दुल्ला और महाराजा हरिसिंह के संबंध और कश्मीर समस्या — Pgs. 125
12 जम्मू-कश्मीर राज्य का भारतीय संघ में विलय — Pgs. 133
13 कश्मीर समस्या और अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों की भूमिका — Pgs. 149
14 सुरक्षा परिषद् में कश्मीर का प्रश्न — Pgs. 158
15 धारा 370 और स्वायत्तता का प्रश्न — Pgs. 170
16 दिल्ली समझौता — Pgs. 189
17 भारतीय जनसंघ और कश्मीर समस्या — Pgs. 198
18 विलय, जनमत संग्रह और डॉ. मुकर्जी — Pgs. 206
19 धारा 370 और डॉ. मुकर्जी — Pgs. 218
20 दिल्ली समझौता और डॉ. मुकर्जी — Pgs. 224
21 प्रजा परिषद् आंदोलन और डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी — Pgs. 236
22 कश्मीर समस्या और डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी की राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता की दृष्टि — Pgs. 263
उपहार — Pgs. 269
परिशिष्ट
परिशिष्ट-1 : महाराजा का भारत में विलय का प्रस्ताव — Pgs. 277
परिशिष्ट-2 : 26 अक्तूबर, 1947 को महाराजा हरिसिंह द्वारा कार्यान्वित विलय-पत्र — Pgs. 280
परिशिष्ट-3 : लॉर्ड माउंटबेटन का जम्मू-कश्मीर के महाराजा को पत्र — Pgs. 283
परिशिष्ट-4 : लॉर्ड माउंटबेटन का पत्र जवाहरलाल नेहरू को — Pgs. 284
परिशिष्ट-5 : भारत के संविधान की धारा-370 — Pgs. 289
परिशिष्ट-6 : भारतीय जनसंघ के प्रथम अधिवेशन के अवसर पर अध्यक्ष पद से डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी का अभिभाषण — Pgs. 291
परिशिष्ट-7 : 29 दिसंबर, 1952 को कानपुर में हुए भारतीय जनसंघ के प्रथम अधिवेशन में अध्यक्षीय पद से दिया गया डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी का भाषण — Pgs. 300
डॉ. ऋतु कोहली वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के महाराजा अग्रसेन कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। भारतीय राजनीतिक चिंतन तथा उससे संबंधित विषयों में उनकी विशेष रुचि रही है। दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. और एम.फिल. करने के बाद उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। उनकी दो पुस्तको´ ‘Political Ideas of M.S. Golwalkar’ तथा ‘Kautilya’s Concept of Welfare State’ का प्रकाशन हो चुका है। समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख और पुस्तक समीक्षा भी लिखती रही हैं। समकालीन राजनीतिक विषयों पर उनका लेखन और विश्लेषण गहन और विद्वत्तापूर्ण है।