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"यह कहानी पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में चलनेवाली गौना प्रथा पर जबरदस्त प्रहार करती है। लडक़ा मिर्जापुर के अपने गाँव से बहुत दूर दिल्ली में नौकरी करता है। उसकी शादी हो जाती है लेकिन गौना प्रथा निभाने के लिए उसकी पत्नी की विदाई नहीं होती। मोबाइल पर दोनों की कभी-कभार बात हो जाती है, और उन बातों के बीच पत्नी उससे अक्सर लड़ती रहती है। लडक़ा एक कॉरपोरेट कंपनी में कार्यरत है और उसके साथ कई लडक़े-लड़कियाँ भी काम करते हैं। लड़ाई से बचने के लिए लडक़ा जब फोन नहीं उठाता तो बिना कुछ सोचे-समझे उसकी पत्नी शक करने लगती है कि उसके पति का किसी से चक्कर है।
दोनों परिवारों की हालत देख-समझकर उस व्यक्ति की पत्नी सारी बात दोनों परिवारों को समझाती है और कहती है कि अब देर न करें और गौना प्रथा को भूलकर जल्दी से इन दोनों का मिलन करा दें। इस तरह दोनों का मिलन होता है और कहानी की हैप्पी एंडिंग होती है।"