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दुम की दरकार—डॉ. शिव शर्मादुमदार प्राणियों को देखकर लगता है कि काश, हमारे पास भी एक दुम होती। जिन प्राणियों के पास होती है, वे शिखर तक पहुँच जाते हैं और दुम-विहीन सड़कों पर ही रेंगते रहते हैं। आज भर्तृहरि एवं तुलसीदास होते तो यह कदापि नहीं लिखते कि साहित्य, संस्कृति, कला-विहीन प्राणी, पुच्छ-विहीन पशु के समान होते हैं। आपके पास दुम नहीं है तो आपको किसी भी राजप्रासाद में प्रवेश नहीं मिलेगा। दुम आपकी निष्ठा की पहचान है, अन्यथा आप अपने कैरियर में सड़ते रहेंगे। यदि आप किसी दल में हैं और नेता के समक्ष अपनी दुम नहीं हिलाई तो मंत्री-विधायक क्या, जीवन भर कार्यकर्ता या स्वयंसेवक बने जाजम बिछाते रहेंगे। अभी तक विचारधारा एवं पार्टी के प्रति निष्ठा व्यक्त करनी पड़ती थी, अब नेता के प्रति भी करनी लाजिमी है।
—इसी संग्रह से
सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ. शिव शर्मा के व्यंग्य अपने परिवेश के समसामयिक विषयों एवं समाज की विसंगतियों, विद्रूपताओं एवं अन्यमनस्कता पर करारी चोट करते हैं। मनोरंजन से भरपूर ये व्यंग्य एक ओर पाठक को गुदगुदाते हैं तो दूसरी ओर उसके मानस को उद्वेलित किए बिना नहीं रहते।
जन्म : 25 दिसंबर, 1938 को मध्य प्रदेश के राजगढ़ (ब्यावरा) में।
प्रकाशन : ‘जब ईश्वर नंगा हो गया’, ‘चक्रम दरबार’, ‘शिव शर्मा के चुने हुए व्यंग्य’, ‘टेपा हो गए टॉप’, ‘काल भैरव का खाता’, ‘अपने-अपने भस्मासुर’, ‘अध्यात्म का मार्केट’ व्यंग्य संकलन; ‘थाना आफतगंज एकांकी’; ‘बजरंगा’, व्यंग्य उपन्यास सहित हास्य-व्यंग्य की दर्जन भर पुस्तकें तथा प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित।
संप्रति : प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त; सांदीपनि कला, वाणिज्य एवं विधि महाविद्यालय के अध्यक्ष।