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"मनुष्य के कार्य उसकी बाहरी व आंतरिक आवश्यकताओं से निर्धारित होते हैं। अल्बर्ट आइंस्टाइन को उनके ‘सापेक्षता के सिद्धांत’ तथा सैद्धांतिक भौतिकी में उल्लेखनीय योगदान के लिए जाना जाता है। सन् 1921 में उन्हें भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। क्वांटम थ्योरी, वॉर्महोल्स तथा थर्मोडायनामिक्स पर उनके लेख एवं शोध आज भी नवोदित वैज्ञानिकों के दिमाग में जिज्ञासा की तरंगें उत्पन्न करते हैं।
‘द वल्र्ड ऐज आई सी इट’ (1934) पुस्तक की रचना प्रथम विश्वयुद्ध तथा हिटलर के सत्तारूढ़ होने के परिणामस्वरूप हुई थी, जिसमें आइंस्टाइन अपने जीवन में संतुलन बिठाने की तमाम उथल-पुथल के बीच भी एक शांतिपूर्ण विश्व की कामना करते हैं।
वैज्ञानिक शब्दजाल से परे इस पुस्तक में आइंस्टाइन ने कई पत्रों, लेखों तथा साक्षात्कारों के माध्यम से यहूदी समाज में व्याप्त शिक्षा, नैतिकता, राजनीति, विज्ञान, धर्म आदि महत्त्वपूर्ण विषयों पर अपनी अंतर्दृष्टि प्रकट की, जिससे वे असंख्य पाठकों में लोकप्रिय बन गए।"