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This novel—
—about a woman...solitary drop thrown just like that anywhere on a blank sheet.
“I feel I am a nomad, wandering since God known when in search of a home...”
—story of her reality.
—love story of those having nothing in common, not even age.
—reality of our education system, shops of religion, stinking families.
As she had been in distress all along, may be, even a little happiness pinched her and instantly she pushed herself back to morbidity. On such occasions, Prem Prakash felt as if a ghost entered her being, dragged her out of the happy state and threw her back into morbidity. She would herself kick and scatter things which built up those few happy moments.
Are they human beings plants, with dust on them?
जन्म : 1939 अतर्रा (बांदा) उ.प्र.।
शिक्षा : अंग्रेजी साहित्य में एम.ए.।
रचना-संसार : ‘वह—अपना चेहरा’, ‘उतरती हुई धूप’, ‘लाल-पीली जमीन’, ‘हुजूर दरबार’, ‘तुम्हारी रोशनी में’, ‘धीर-समीरे’, ‘पाँच आँगनों वाला घर’, ‘फूल...इमारतें और बंदर’, ‘कोहरे में कैद रंग’, ‘धूल पौधों पर’, ‘अरण्य-तंत्र’ (उपन्यास); ‘नए पुराने माँ-बाप’, ‘अंतःपुर’, ‘धाँसू’, ‘रगड़ खाती आत्महत्याएँ’, ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’, ‘अपाहिज’, ‘खुद के खिलाफ’, ‘खाक इतिहास’, ‘पगला बाबा’, ‘आसमान कितना नीला’, ‘हवाबाज’, ‘मुझे बाहर निकालो’, ‘नए सिरे से’ (कहानी-संग्रह); ‘धुंध भरी सुर्खी’, ‘दरख्तों के पार...शाम’, ‘झूलती लड़ें’, ‘परतों के बीच’, ‘और यात्राएँ’ (यात्रा-वृत्तांत); ‘साहित्य का संदर्भ’, ‘कथा भूमि’, ‘संवाद अनायास’, ‘समय और सर्जना’, ‘साहित्य, साहित्यकार और प्रेम’, ‘सान्निध्य साहित्यकार’ (संस्मरण); ‘साहित्यकार होना’, ‘कवि के घर में चोर’, ‘मास्टर मन्सुखराम’, ‘आदमी का जानवर’ (साहित्यिक निबंध), ‘ओ प्रकृति माँ’ (कविता) एवं ग्यारह विविध विषयों की पुस्तकें, एक जीवनी तथा कई कृतियों के भारतीय भाषाओं में अनुवाद।
सम्मान-पुरस्कार : प्रेमचंद पुरस्कार, व्यास सम्मान, सुब्रमण्यम भारती पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, भारत-भारती सम्मान, सरस्वती सम्मान से अलंकृत।