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पहली सरकार के चुनाव के समय
महीनों से मेहनत करनी पड़ती थी। इस काम में कागज व समय की बरबादी बहुत होती थी। अनेक अधिकारी एवं कर्मचारी मत-पेटियाँ लेकर तैयारी में लगे रहते थे। गणना में भी अधिक समय लगता था और यह काम काफी थकाने वाला एवं ऊबाऊ था। चुनाव के समय मत-पत्रों की छपाई, मत-पत्रों एवं मत-पेटियों का वितरण, फिर उन्हें इकट्ठा करना और फिर करोड़ों मतों की गिनती करना बड़ा ही दुष्कर कार्य था।
अब ई.वी.एम. प्रणाली के माध्यम से ही चुनाव संपन्न होते हैं। अभी भी लोगों को ई.वी.एम. के बारे में सही, तथ्यात्मक और उचित जानकारी नहीं है, इसलिए वे ई.वी.एम. से संबधित निराधार बातें करते रहते हैं। ई.वी.एम. के बारे में आसपास भी गहनता से कम ही जानने को मिलता है। इस पुस्तक में ई.वी.एम. के हर बारीक पहलू को रोचक तरीके से बताया गया है। पुस्तक में जगह-जगह पर रोचक कहानियाँ भी हैं। ये कहानियाँ ई.वी.एम. एवं चुनाव प्रणाली में संतुलन बनाए रखती हैं और पाठकों को नई-नई जानकारियाँ भी प्रदान करती हैं। इस पुस्तक में आवश्यक चित्रों एवं संकेतों का प्रयोग भी किया गया है, जिससे यह पुस्तक जीवंत बन पड़ी है। इस पुस्तक को पढ़कर पाठकों को ई.वी.एम. के बारे में प्रामाणिक जानकारी मिल पाएगी और इससे जुड़ी उनकी अनेक भ्रांतियाँ दूर हो जाएँगी।
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अनुक्रम
प्राक्कथन —Pgs. 7
भूमिका —Pgs. 13
आभार —Pgs. 19
1. भारत में मतदान प्रणाली का विकास, प्राचीन भारत में निर्वाचन —Pgs. 25
2. भारतीय ई.वी.एम. का विकास —Pgs. 42
3. कानूनी लड़ाइयाँ और विधिक ढाँचे का विकास —Pgs. 94
4. विरोधी —Pgs. 106
5. राजनीतिज्ञों के बदलते बयान —Pgs. 161
6. भारतीय ई.वी.एम. छेड़छाड़मुक्त हैं —Pgs. 169
7. खराबी आना हैकिंग नहीं है —Pgs. 187
8. विश्व की इलेक्ट्रोनिक वोटिंग प्रणालियाँ —Pgs. 194
डॉ. आलोक शुक्ला एक सर्जन और आई.ए.एस. अधिकारी हैं। शानदार शैक्षणिक कॅरियर के बाद वे भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हो गए और मध्य प्रदेश के शिवपुरी तथा सागर में कलेक्टर रहे। उन्होंने स्वास्थ्य, शिक्षा, राजस्व, आपदा प्रबंधन और खाद्य विभाग के दायित्व भी निर्वहन किए। छत्तीसगढ़ में धान की खरीद और पी.डी.एस. को कंप्यूटरीकृत किए जाने के उनके कार्य के लिए उन्हें 'प्रधानमंत्री लोक प्रशासन उत्कृष्टता पुरस्कार' (2010) से सम्मानित किया गया। वर्ष 2009 से 2014 के बीच उप चुनाव आयुक्त की भूमिका निभाते हुए उन्होंने दो राष्ट्रीय और राज्य के अनेक चुनावों को संपन्न कराने का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया। चुनाव-प्रक्रिया की अपनी गहरी समझ के साथ उन्होंने मिस्र, वेनेजुएला और ऑस्ट्रेलिया में हुए चुनावों में अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक के रूप में कार्य किया और मालदीव में चुनाव की प्रणाली को विकसित करने के अभियान की अगुवाई की।
आलोक की पहली पुस्तक 'एंबुश, टेल्स ऑफ द बैलट' को चहुँओर प्रशंसा मिली। इसने चुनाव संपन्न कराने से जुड़ी वास्तविक जीवन की कहानियों और उन गुमनाम नायकों को दुनिया के सामने ला दिया, जो उनके संचालन एवं उन्हें सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी निभाते हैं।