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"ग़ज़ल के रंग जब दिल की ज़मीन पर बिखरते हैं तो एहसास सुगंधित होने लगता है, मन की मुँड़ेरों पर नए-नए दीये रोशन होने लगते हैं; फूल अपनी-अपनी शाख़ पर झूमने लगते हैं, यह कमाल है ग़ज़ल का। ग़ज़ल ने यह कमाल यूँ ही हासिल नहीं कर लिया, ग़ज़ल ने दिलों तक पहुँचने के लिए तवील सफ़र तय किया है, ग़ज़ल के आगोश में जो भी आया, ग़ज़ल का हो गया।
मालाजी का ग़ज़ल-संग्रह 'एहसास के जुगनू' उनकी लगन और दीवानगी का परिचायक है। इसने उन्हें उस मुक़ाम पर पहुँचा दिया है, जहाँ पहुँचने में पूरी उम्र लग जाया करती है। डॉ. माला कपूर स्वच्छंद विचारवाली शायरा हैं। व्यक्तिगत तौर पर भी उनका यही कहना है कि महिलाओं को घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर अपनी मौजूदगी दर्ज करानी चाहिए। कार रेसिंग हो, चाहे पैराग्लाइडिंग हो, वे ख़ुद सभी में अव्वल आने का हुनर उस उम्र में दिखा चुकी हैं, जिस उम्र में कोई ऐसा कुछ कर पाने की सोच भी नहीं पाता।"