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यह उपन्यास उन अहेरी पुरुषों पर आधारित है, जिनकी दुर्बल मानसिकता की वजह से कुछ बच्चियाँ समाज में उपेक्षित जीवन या कह सकते हैं कि नारकीय जीवन जीने पर विवश होती हैं। इस उपन्यास की नायिका की किस्मत में ईश्वरीय प्रदत्त दोष है, उसकी सुंदरता और दूसरा सबसे बड़ा दोष गरीब परिवार में जन्म लेना। नायिका के आसपास चलता घटनाओं का कुचक्र सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वह अकेली ऐसी लड़की है, जो बार-बार दुष्ट पुरुषों की विकलांग मानसिकता का शिकार हो रही है। उपन्यास पूर्णरूपेण काल्पनिक नहीं है। उपन्यास की सभ्य, सम्मानित और भोली-भाली नायिकाओं से जब लेखिका का परिचय हुआ तो वह उनसे प्रभावित हुए बिना न रह सकी। लेकिन जब उन्होंने अपने बीते हुए कल से लेखिका को अवगत कराया तो वह उनके द्वारा बचपन से झेले गए अनेक कष्टों को सुनकर सन्न रह गई।
समाज इन पीडि़तों को उनका खोया कुछ नहीं लौटा सकता, परंतु इस उपन्यास के माध्यम से लेखिका यह संदेश देना चाहती है कि जो घृणित कार्य मानसिक रूप से विकलांग पुरुषों द्वारा किए जाते हैं, उस पापकर्म को भोगनेवाली बच्चियों को किसी प्रकार से समाज में उपेक्षित नजरों से न देखकर उनका सम्मान करना चाहिए। साथ ही दोषी पुरुषों को कठोर सजा का प्रावधान होना चाहिए, जिससे समाज में विचरनेवाले आखेटक प्रवृत्ति के पुरुष सावधान हो जाएँ और इस तरह के दुष्कर्मों को त्याग दें।
नारी के सम्मान और उसकी अस्मिता का पुनर्स्थापन करनेवाला पठनीय उपन्यास।
मीना अरोड़ा ‘मीना’ का जन्म 22 सितंबर को हुआ। इनकी शिक्षा हल्द्वानी शहर जिला नैनीताल (उत्तराखंड) में संपन्न हुई। बचपन से साहित्य के प्रति रुझान रहा है। छोटी उम्र से डायरी लेखन, कविताएँ, कहानियाँ तथा शायरी लिखना आरंभ कर दिया था, परंतु संकोचवश कभी प्रकाशन नहीं करवाया। इनकी कविताएँ सर्वप्रथम राष्ट्रीय दैनिक ‘अमर उजाला’ में प्रकाशित हुईं।
इनके व्यंग्यों तथा कविताओं में समाज में फैली बुराइयों के प्रति आक्रोश है। सभ्यता, संस्कृति और राजनीति के गलियारों में उठते तूफानों पर इनके व्यंग्य, लेख तथा कविताएँ सटीक प्रहार करती हैं। कविताओं में लयात्मकता है। सरस और सरल भाषा शैली होने के कारण हर वर्ग का व्यक्ति इनकी रचनाओं को आसानी से समझ सकता है।
‘शेल्फ पर पड़ी किताब’ तथा ‘दुर्योधन एवं अन्य कविताएँ’ के लिए उन्हें सम्मानित किया गया है।