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भूमि के मन में आया कि नाश्ता बनाने के लिए मना कर दे, लेकिन फिर सोचा कि बस इसी बात पर तूफान न आ जाए। उसने व्योम की ओर मुँह करके पूछा, ‘‘क्या खाओगे—ब्रेड-आमलेट या सब्जी पराँठा?’’
‘‘यह भी कोई पूछने की बात है?’’
‘‘मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है, इसलिए पूछ रही हूँ।’’
जैसे कहीं से बू आ रही हो, गंदा सा मुँह बनाकर व्योम बोला, ‘‘तुम्हारे तो हर समय दर्द होता रहता है। बस दिनभर के कामों में सुबह का नाश्ता तो बनाती हो, उस पर भी बहाने। रहने दो, मैं खुद ही बना लूँगा।’’
भूमि उत्तर सुनकर अवाक् हो गई। क्या यह वही व्योम है, जो शहद से भी मीठी बातें उसके साथ करता था। सुबह के समय तो भूमि को बाहुपाश से छोड़ता ही नहीं था। जबरदस्ती वह उठकर घर का काम करती थी और कॉलेज जाती थी। कभी-कभी तो कहता था, ‘चलो आज हम दोनों लीव ले लेते हैं। घूमेंगे, फिरेंगे, ऐश करेंगे।’ और अब इतनी कड़वी बोली कि जहर भी पीछे छूट गया।
—इसी संग्रह से
प्रस्तुत संग्रह की कहानियाँ लेखक और पाठक के दिलों को पुल की भाँति जोड़ती हैं। कथानक वास्तव में प्रभावोत्पादक, विचारोत्तेजक एवं जीवन के यथार्थ के साथ-साथ कल्पना एवं संवेदना से भरपूर है। मर्मस्पर्शी, संवेदनशील, रोचक-पठनीय कहानियों का संकलन।
जन्म : 8 अप्रैल, 1943।
शिक्षा : एम.ए., एल.टी.।
प्रकाशन : ‘बबूल का पेड़’, ‘साँप और शहर’, ‘71 लघु कथाएँ’ (लघुकथा संग्रह); ‘तपती रेत की शिलाएँ’, ‘वक्त की खूँटी’, ‘धूप के टुकडे़’ (काव्य-संग्रह); ‘पिंजरा खुल गया’, ‘धुएँ के पहाड़’, ‘धुएँ की इमारत’, ‘मुट्ठी में बंद खुशबू’, ‘संजीवनी बूटी’, ‘वक्त की करवट’, ‘तबादला’, ‘सनसैट व्यू’ (कहानी-संग्रह); ‘पिघलता सीसा’, ‘अक्षम्य’, ‘आज की शकुंतला’, ‘सरोरूह’, ‘मैं अनीष नहीं’ (उपन्यास), ‘बालगीत भाग-1, 2’, ‘हम हैं हिंदुस्तानी’, ‘मेरा गाँव’ (बालगीत), ‘सॉरी मम्मी’, ‘थैंक यू पापा’, ‘अरे! आसमान से रुई गिर रही है’, ‘वाह-वाह! बडे़ तीरंदाज हैं’, ‘पापा पिकनिक चलो न’, ‘रुको नहीं कुसुम’ (बाल-उपन्यास), ‘मैं जंगल का राजा हूँ’, ‘एकता में बल है’ (बाल-कहानी संग्रह); लगभग सभी बाल पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
सम्मान-पुरस्कार : म.प्र. साहित्य सम्मेलन का सम्मान, बरेली की संस्थाओं द्वारा सम्मान, उ.प्र. हिंदी संस्थान का सर्जना पुरस्कार तथा अन्य अनेक सम्मान-पुरस्कार। "