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जैसे-जैसे समझ आती गई, लोगों के चेहरों से झूठ के नकाब उतरते गए। मोह से निकलकर सच का सामना करने का समय आ गया। मैं जड़ से सिमटकर चेतन की ओर बढ़ गई। एकांत अच्छा लगता था। चाँद की घटती-बढ़ती कश्ती और फिर एक बिंदु। उसे देर रात तक ताकना मेरा प्रिय खेल था। आकाश में किसी भी सितारे का टूटकर पक्षी सा उड़कर कहीं और जा बैठना मुझे अचंभित करता। कुछ ऐसे ही, जैसे आत्मा शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में जा समाती है। सूर्य की किरणों को पकड़ने की चेष्टा करती, क्योंकि एक विचार कहीं गहरे बाल मन में घर कर गया कि ईश्वर सूर्य पर रहते हैं।
उस रात जब माँ संसार से विदा हुई, मैं मात्र अठारह माह की थी। माँ के बिना जीवन कैसे कटता है, यह वही जानते हैं, जिन्होंने इस त्रासदी को भोगा है। मगर मैं...मैं तो माँ का ही शेष जीवन जी रही हूँ, जो वे मुझे भेंट स्वरूप दे गईं। नहीं कह सकती कि यह भेंट वरदान बनी या अभिशाप।
यह है मेरी अधूरी कहानी।
—लेखिका
प्रसिद्ध लेखिका विजया गोयल की मर्मस्पर्शी व संवेदनशील कहानियों का संकलन, जो पाठक के हृदय को स्पंदित करेंगी व मन-मस्तिष्क में स्थान बना लेंगी। उनकी रचनाओं में समाज के निर्बल वर्ग व नारी उत्पीड़न का अत्यंत सजीव एवं मार्मिक विवरण प्रस्तुत हुआ है। मानवीय रिश्तों का चित्रण उनके द्वारा रचित साहित्य की विशेषता है।
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अनुक्रम
आत्म वतव्य — Pg. 7
आभार — Pg. 9
1. रिश्तों के तराजू — Pg. 13
2. एक कहानी अधूरी सी — Pg. 15
3. कैंची — Pg. 25
4. लगाव — Pg. 31
5. बुढ़िया — Pg. 37
6. जलतरंग — Pg. 40
7. प्रेम पथ — Pg. 49
8. जंगल — Pg. 59
9. कपूत — Pg. 62
10. मुसकान — Pg. 69
11. कर्म गति — Pg. 73
12. समर्पण — Pg. 75
13. सृजन — Pg. 101
14. आश्रम — Pg. 104
15. भोर — Pg. 109
16. एक पत्र गीत के नाम — Pg. 122
17. कृतिका — Pg. 127
18. संघर्ष — Pg. 149
19. शिव का अर्धनारीश्वर रूप — Pg. 167
20. सिंधु के तट पर — Pg. 173
21. फिर वही — Pg. 179
22. रूपा — Pg. 181
23. अग्निपरीक्षा — Pg. 197