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इसके बाद यह प्रस्ताव पारित किया गया— ‘‘यहाँ बहुधा यह कहा गया और मैं भी यह कहता रहा हूँ कि हम लोगों ने विगत सत्रह दिनों में जैसा आयोजन देखा है ऐसा अब इस पीढ़ी को तो उनके जीवनकाल में पुनः देखने का अवसर नहीं प्राप्त होगा; पर जिस प्रकार के उत्साह व शक्ति का संचार इस सम्मेलन ने किया है, लोग दूसरे धर्म-सम्मेलन के स्वप्न देखने लगे हैं, जो इससे भी अधिक भव्य व लोकप्रिय होगा। मैंने अपनी बुद्धि लगाई है कि अगले धर्म-सम्मेलन के लिए उचित स्थान कौन सा हो। जब मैं अपने अत्यंत नम्र जापानी भाइयों को देखता हूँ तो मेरा मन कहता है कि पैसिफिक महासागर की शांति में स्थित टोकियो शहर में अगला धर्म-सम्मेलन किया जाए, पर मैं आधे रास्ते रुकने की बजाय सोचता हूँ कि अंग्रेजी शासन के अधीन भारतवर्ष में यह सम्मेलन हो। पहले मैंने बंबई शहर के लिए सोचा, फिर सोचा कि कलकत्ता अधिक उपयुक्त रहेगा, पर फिर मेरा मन गंगा के तट की प्राचीन नगरी वाराणसी पर जाकर स्थिर हो गया, ताकि भारत के सबसे अधिक पवित्र स्थल पर ही हम मिलें।
‘‘अब यह भव्य सम्मेलन कब होगा? हम आज यह निश्चय कर विदा ले रहे हैं कि बीसवीं सदी में अगला भव्य सम्मेलन वाराणसी में होगा तथा इसकी अध्यक्षता भी जॉन हेनरी बरोज ही करेंगे।’’
—इसी पुस्तक से
इस पुस्तक में एक फ्रांसीसी नर्तकी एमा काल्वे पर स्वामी विवेकानंद के प्रभाव की चर्चा है। इस अभिनेत्री ने कठोर संघर्ष कर नृत्य-नाटिका के क्षेत्र में विश्व में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। अपार संपत्ति कमाई तथा बेहिसाब खर्च भी किया। एक सुंदर महल खरीदा। एकमात्र पुत्री शिकागो में जलकर मर गई, जब वह प्रेक्षागार में नृत्य कर रही थी। काल्वे यह आघात सहन न कर पाई, उसने आत्महत्या का असफल प्रयास किया। ऐसे घोर संकट के समय भारी अपराध-बोध से ग्रस्त वह स्वामी विवेकानंद से मिली। उन्होंने उसे शांति दी। उसे कर्मपथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। वह स्वामीजी की भक्त बन गई। काल्वे पुनः अपने नृत्य-क्षेत्र में लौट आई। विश्व-भ्रमण किया। अमेरिका, हवाना आदि
डॉ. शंकरी प्रसाद बसु का जन्म 21 अक्तूबर, 1928 को हावड़ा, प. बंगाल में हुआ था और हावड़ा विवेकानंद इंस्ट्रीट्यूट में अध्ययन किया। वे शोधकर्ता, विद्वान्, लेखक और आलोचक हैं। मुख्य रूप से बंगाली भाषा में लिखते हैं। स्वामी विवेकानंद पर इन्होंने शोध की है और इस विषय पर उनकी पुस्तकों में ‘सहास्य विवेकानंद’ और ‘बंधु विवेकानंद’ शामिल हैं। उनके उल्लेखनीय प्रकाशनों में ‘विवेकानंद और समकालीन भारतवर्ष’ के नौ खंडों के लिए 1978 में प्रतिष्ठित साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला तथा रामकृष्ण विवेकानंद विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट उपाधि प्रदान की।
जन्म : 17 अक्तूबर, 1928 को ग्राम मुकुंदगढ़ (राजस्थान) में।
शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा जहाँ आज पूर्वी बंगाल है, सिराजगंज सिरसाबाड़ी में, स्कॉटिश चर्च कॉलेज, कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र से स्नातक परीक्षा व गणित ऑनर्स में विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम होकर स्वर्ण पदक प्राप्त किया। एम.ए. में प्रसिद्ध वैज्ञानिक श्री सत्येन बोस के पास Pure Mathematics’ के विद्यार्थी रहे।
कृतित्व : पढ़ने की तीव्र इच्छा के बावजूद परिवार के दबाव में सन् 1949 में अमेरिका jute goods के निर्यात में लग गए।
औद्योगिक जगत् में रहकर भी उनका सांस्कृतिक कायोर्ं में सक्रिय योगदान, कलकत्ता के प्रमुख सांस्कृतिक संस्थान ‘भारतीय संस्कृति संसद्’ की 1954 के संस्थापन के संस्थापक सदस्य, एस्ट्रोनॉमी, रामकृष्ण मिशन की गतिविधियों में रुचि, शेंडेक्पू-फालुट (सिक्किम), तिस्ता के किनारे लाओचिंग घाटी, कोल्हाई ग्लेशियर (कश्मीर), पिंडारी ग्लेशियर व हर की धून (उत्तर प्रदेश) ग्लेशियरों की यात्राएँ, रामकृष्ण विवेकानंद साहित्य का मूल बँगला में अध्ययन, ध्रुपद गायक श्री अमीनुद्दीन के छात्र, बोटविनिक चेस एकाडमी (रूसी सांस्कृतिक केंद्र) के अध्यक्ष, जहाँ से भारत के पहले तीन शतरंज ग्रेंड मास्टर निकले।