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भारत में शिक्षा कभी पेशा नहीं थी, किंतु आज शिक्षा का बाजारीकरण देश के समक्ष बड़ी चुनौती है। आज शिक्षक व्यवसायी है और छात्र उपभोक्ता। इनके बीच भावनात्मक संबंध नगण्य होता जा रहा है।
‘एक टीचर की डायरी’ आज के माहौल में शिक्षक और छात्र के बीच पनप रही दूरी को पाटने का एक प्रयास है। टीचर के प्रति छात्र की डूबती आस को थामने की ईमानदार कोशिश है। इसे पढ़कर तीन बातें जेहन में आएँगी : एक—प्रकृति टीचर बनाने की प्रक्रिया स्वतः करती है; दूसरी—टीचर को ‘वज्रादपि कठोराणि, मृदुनि कुसुमादपि’ होना होता है एवं तीसरी—शिक्षक सदा शिक्षक होता है, यानी अग जग में शिक्षक।
नित नए रचनात्मक प्रयोग विद्यार्थियों को शिक्षक से गहरे जुड़ने का जरिया बनते हैं। आज बालकों के दिमाग में पैदायशी स्पीड का इंजन फिट है, उन्हें कक्षा की चारदीवारी में बाँधकर रखना कोई खेल नहीं, फिर घर का वातावरण प्रतिकूल हो, तब शिक्षक का दायित्व बढ़ जाता है। आज के छात्र तरह-तरह के मानसिक दबाव, फ्रस्ट्रेशन, डिप्रेशन के शिकार हैं। ऐसे में टीचर का ‘हीलिंग टच’ इन बच्चों का जीवन बदल सकता है। पुस्तक में किशोर मन की उलझन सुलझाने के कई प्रसंग हैं। छात्रों को मानव धर्म के साथ प्रकृति प्रेम तथा जीव-जंतु से लगाव का संदेश यह डायरी बखूबी देती है।
इस विधा की सख्त जरूरत है। भावना शेखर की यह कथा डायरी नायाब कृति है, जो शिक्षाजगत् से जुड़े हर व्यक्ति के लिए पठनीय और अनुकरणीय है।
—उषा किरण खान
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अनुक्रम
मेरी बात —Pgs. 7
1. अँगूठी —Pgs. 13
2. रक्षा —Pgs. 21
3. मुआफ़ी —Pgs. 31
4. गुंजल —Pgs. 38
5. रिज़ल्ट —Pgs. 45
6. लास्ट स्पीच —Pgs. 49
7. दस्तख़त —Pgs. 51
8. आई हेट माय नेम —Pgs. 60
9. खाई —Pgs. 64
10. उतरन —Pgs. 73
11. विजेत्री —Pgs. 79
12. टर्निंग प्वाइंट —Pgs. 86
13. प्रेमराग —Pgs. 95
14. मॉरल साइंस —Pgs. 105
15. आसमान झुक गया —Pgs. 107
16. हस्तक्षेप —Pgs. 110
17. काली कबूतरी —Pgs. 113
18. मेट्रो का सफर —Pgs. 116
19. रामनवमी —Pgs. 118
20. परीक्षा क्लीन मिशन-1 —Pgs. 120
21. परीक्षा क्लीन मिशन-2 —Pgs. 123
22. हैप्पीनेस —Pgs. 125
23. लाल आसमान —Pgs. 128
24. मैडम ऑटोग्राफ! —Pgs. 133
25. धूप सी हँसी —Pgs. 137
26. मुनिया —Pgs. 140
27. इमली —Pgs. 145
28. ज़नाना पार्क और शहतूत —Pgs. 146
29. त्योहार —Pgs. 148
30. कंपनी बाग़ —Pgs. 152
31. वृहस्पतिवार —Pgs. 154
32. जोगिरा सरर... 156
33. फ़ालसे —Pgs. 159
भावना शेखर
जन्म एवं शिक्षा : मूलतः हिमाचल प्रदेश से जुड़ी, दिल्ली में जनमी, लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर द्वय (हिंदी, संस्कृत), एम.फिल. और पी-एच.डी.। गत सत्ताईस वर्षों से अध्यापन।
रचना-संसार : आस्तिक दर्शनों में प्रतिपादित मीमांसा सिद्धांत, सत्तावन पँखुडि़याँ, साँझ का नीला किवाड़, मौन का महाशंख, जुगनी, खुली छतरी, जीतो सबका मन, मिलकर रहना। अनेक कविताओं का जापानी भाषा में अनुवाद।
गतिविधियाँ : आकाशवाणी के सर्वभाषा कवि सम्मेलन, बिहार के राष्ट्रीय ‘कविता समारोह’ और भारत-जापान द्वारा आयोजित पोएट्री सिंपोजियम में काव्य-पाठ। बिहार में ‘जागरण संवादी’ एवं पटना लिटरेचर फेस्टिवल में भागीदारी, छत्तीसगढ़ सरकार के ‘हिंदी हैं हम’ और दिल्ली सरकार की शैक्षिक कार्यशालाओं में विशेषज्ञ की भूमिका। इंडोनेशिया में ‘रामायण का वैज्ञानिक संदर्भ’ पर व्याख्यान।
पुरस्कार-सम्मान : सर्वश्रेष्ठ बालकथा का मधुबन संबोधन पुरस्कार एवं TERI संस्था द्वारा पुरस्कार। हिंदी साहित्य सम्मेलन, बिहार द्वारा साहित्यसेवी एवं शताब्दी पुरस्कार। नव अस्तित्व फाउंडेशन, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर द्वारा साहित्य के लिए वीमेंस अचीवर्स अवार्ड।
संप्रति : ए.एन. कॉलेज पटना में अध्यापन।
संपर्क : 8809931217