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सतत संघर्षशील आम आदमी के जीवन से जुड़ी ये कहानियाँ मात्र कहानियाँ ही नहीं, कहीं-कहीं एक दस्तावेज बनकर भी उभरती हैं। ऐसे प्रश्नों एवं प्रश्न-चिह्नों की ओर भी इंगित करती हैं, जहाँ समाधान स्वयं विश्लेषित होकर यथार्थ का एक दूसरा रूप उद्घाटित होता है। यह सच है कि सर्वत्र दुःख है, निराशा है, कुंठाएँ हैं, निरंतर छोटे होते जा रहे मानव के जीवन की अनगिनत त्रासदियाँ हैं, परंतु निराशा-हताशा के उन काले बादलों के बीच कहीं-कहीं आशाओं की रजत रेखाएँ भी हैं।
इस संग्रह की कहानियों में पहाड़ का परिवेश जिस यथार्थवादी कलात्मक ढंग से चित्रित हुआ है, वह अद्वितीय है। यहाँ कहानियाँ आँखों देखा यथार्थ बन जाती हैं। लेखक ने समय के साथ-साथ परिवर्तित होते समाज का जो चित्र प्रस्तुत किया है, वह मात्र छूता ही नहीं, कहीं गहरे तक प्रभावित किए बिना नहीं रहता।
पर्वतीय जन-जीवन के ये धुँधले-उजले साये पर्वतीय जन-जीवन का जीवंत स्वरूप चलचित्र की तरह उद्घाटित करते चले जाते हैं। पाठक इसके माध्यम से वर्तमान ही नहीं, अतीत में भी गहराई से झाँकने लगता है। कहीं-कहीं ऐसी सहजता के साथ-साथ ऐसी जीवंतता रचना को एक नया आयाम दिए बिना नहीं रहती।
पहाड़ी जीवन की आंतरिक पीड़ा और वेदना की झलक प्रस्तुत करती हैं ये मर्मस्पर्शी पठनीय कहानियाँ। "
जन्म : 11 नवंबर, 1960 को पिथौरागढ़ के गाँव खड़कोट में।
शिक्षा : डिप्लोमा इन फार्मेसी एवं स्नातक।
कृतित्व : 1977 में राजकीय स्नातक महाविद्यालय, पिथौरागढ़ में सैन्य विज्ञान परिषद् के महासचिव बने। 2001 की उत्तरांचल अंतरिम विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष निर्वाचित। कॉमनवैल्थ देशों में सर्वाधिक कम उम्र में विधानसभा अध्यक्ष निर्वाचित होने का गौरव प्राप्त। उत्तराखंड के प्रथम उत्कृष्ठ विधायक बने। जी.बी. मावलंकर शूटिंग राष्ट्रीय निशानेबाजी प्रतियोगिता में रजत पदक और राज्य स्तरीय निशानेबाजी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मलेशिया, कनाडा, दुबई, लंदन आदि देशों की यात्राएँ।
प्रकाशन : ‘एक आवाज’, ‘प्रारब्ध’ (कविता संग्रह); ‘लक्ष्य’ (भाषण व निबंध संग्रह) प्रेस में। संप्रति : साहित्य-सृजन व समाज-सेवा में साधनारत।