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‘एक वैज्ञानिककी आत्मकथा’ (ए लाइफ इन साइंस) पुस्तक में प्रोफेसर सी.एन.आर. राव इस विषय में अपनी यात्रा की चर्चा के साथ ही हमें यह बहुमूल्य ज्ञान देते हैं कि एक महान् वैज्ञानिक बनने के लिए क्या करना पड़ता है। यह पुस्तक उनके शुरुआती जीवन तथा उन मुश्किलों के बारे में बताती है, जिनका सामना उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में अपने सपनों को पूरा करने के प्रयास में करना पड़ा। प्रो. राव स्वतंत्रता पश्चात् के भारत के सबसे विशिष्ट, समर्पित और व्यापक सम्मान पानेवाले एक वैज्ञानिक के जीवन की अनूठी झलक दिखाते हैं। वे अतीत और वर्तमान के प्रमुख वैज्ञानिकों की भी चर्चा करते हैं, जिनसे उन्हें प्रेरणा मिली।
प्रो. राव इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक संकल्प की चर्चा भी विस्तार से करते हैं। वे ऐसे युवाओं को अनमोल सुझाव देते हैं, जो विज्ञान के क्षेत्र में जीवन जीना चाहते हैं और उन अपरिहार्य रुकावटों से निपटने के रास्ते भी सुझाते हैं, जो उत्कृष्टता प्राप्त करने के दौरान पैदा होती हैं।
प्रो. सी.एन.आर. राव जवाहरलाल नेहरू उच्चतर वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र बेंगलुरु में लाइनस पाउलिंग प्रोफेसर एवं भारतीय विज्ञान संस्था बेंगलुरु में मानद प्रोफेसर हैं। डॉ. राव भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में प्राध्यापक थे। वे कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांताबरबरा में विजिटिंग प्रोफेसर रहे तथा भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी सहित, रॉयल सोसाइटी लंदन, यू.एस. राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, रशियन अकादमी एवं जापानी अकादमी एवं अन्य कई संस्थाओं के सदस्य रहे।
प्रो. राव को डॉक्टरेट की 48 मानद उपाधियाँ प्रदान की गई हैं। उनके 1400 से अधिक शोधपत्र एवं चालीस पुस्तकें प्रकाशित हैं। 2006 में उन्हें नेशनल रिसर्च प्रोफेसर नामित किया गया। 2012 में प्रो. राव को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।