₹500
‘इन सबकी शुरुआत उड़ीसा में 1972 में हुए उप-चुनाव से हुई। लाखों रुपए खर्च कर नंदिनी को राज्य की विधानसभा के लिए चुना गया था। गांधीवादी जयप्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार के इस मुद्दे को प्रधानमंत्री के सामने उठाया। उन्होंने बचाव में कहा कि कांग्रेस के पास इतने भी पैसे नहीं कि वह पार्टी दफ्तर चला सके। जब उन्हें सही जवाब नहीं मिला, तब वे इस मुद्दे को देश के बीच ले गए। एक के बाद दूसरी घटना होती चली गई और जे.पी. ने ऐलान किया कि अब जंग जनता और सरकार के बीच है। जनता—जो सरकार से जवाबदेही चाहती थी और सरकार—जो बेदाग निकलने की इच्छुक नहीं थी।’
ख्यातिप्राप्त लेखक कुलदीप नैयर इमरजेंसी के पीछे की सच्ची कहानी बता रहे हैं। क्यों घोषित हुई इमरजेंसी और इसका मतलब क्या था, यह आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि तब प्रेरणा की शक्ति भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मिली थी और आज भी सबकी जबान पर भ्रष्टाचार का ही मुद्दा है। एक नई प्रस्तावना के साथ लेखक वर्तमान पाठकों को एक बार फिर तथ्य, मिथ्या और सत्य के साथ आसानी से समझ आनेवाली विश्लेषणात्मक शैली में परिचित करा रहे हैं। वह अनकही यातनाओं और मुख्य अधिकारियों के साथ ही उनके काम करने के तरीके से परदा उठाते हैं। भारत के लोकतंत्र में 19 महीने छाई रही अमावस पर रहस्योद्घाटन करनेवाली एक ऐसी पुस्तक, जिसे अवश्य पढ़ना चाहिए।
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अनुक्रम
मेरी बात —7
1. तानाशाही की ओर —13
2. स्याह होता अँधेरा —69
3. सुरंग का अंत—116
4. फैसला —172
5. अनुबंध-1 : मारुति —206
6. अनुबंध-2 : सेंसरशिप के दिशानिर्देश प्रकाशन के लिए नहीं (गोपनीय) —214
वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सांसद कुलदीप नैयर भारत के जाने-माने और व्यापक रूप से सिंडिकेटेड पत्रकार हैं। उनका जन्म 1923 में सियालकोट में हुआ और अपने परिवार के साथ बँटवारे के समय दिल्ली आने से पहले उन्होंने लाहौर यूनिवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने अपने कॅरियर की शुरुआत उर्दू अखबार ‘अंजाम’ के साथ की और कुछ समय तक अमेरिका में रहने के बाद लाल बहादुर शास्त्री तथा गोविंद बल्लभ पंत के सूचना अधिकारी भी रहे।
नैयर आगे चलकर ‘द स्टेट्समैन’ के स्थानीय संपादक और भारतीय समाचार एजेंसी यू.एन.आई. के प्रबंध संपादक भी रहे। वे पच्चीस वर्षों तक ‘द टाइम्स’ के संवाददाता रहे और बाद में वी.पी. सिंह की सरकार के समय इंग्लैंड में भारतीय उच्चायुक्त भी रहे। प्रेस की आजादी के लिए लड़ते हुए इमरजेंसी के दौरान उन्हें कैद कर लिया गया। भारत और पाकिस्तान के बीच बेहतर संबंधों और मानवाधिकारों पर उनकी भूमिका ने अनेक देशों में उन्हें सम्मान और प्यार दिलाया। एक दर्जन से भी अधिक पुस्तकों के लेखक नैयर के साप्ताहिक स्तंभ पूरे दक्षिण एशिया में पढ़े जाते हैं।