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‘फरारी’ सत्तर के दशक के आरंभ में तब लिखा गया, जब नक्सलवाद सत्ता (कांग्रेस) के खिलाफ सिर उठा रहा था और जैसे स्वतंत्रता आंदोलन में युवा वर्ग घर-कॉलेज त्याग कर गांधीजी के कदमों पर चल पड़ा था, वैसे ही विद्यापीठ और महाविद्यालय के छात्र मजदूरों व जनजातियों के हित के लिए, उनको हक दिलाने के लिए दृढनिष्ठा के साथ चारु मजुमदार जैसे साम्यवादी नेताओं के खेमों में भरती हो रहे थे। लेकिन नक्सली आंदोलन की नींव में हिंसा थी।
अलबत्ता ‘फरारी’ का नायक नक्सली है। पर इस उपन्यास में राजनीति कम और रिश्तों का दर्द अधिक है। आशा है, प्रख्यात लेखक-कार्टूनिस्ट समाजधर्मी आबिद सुरती का ग्राफिक शैली में लिखा यह उपन्यास पाठकों को आकर्षित करेगा।
आबिद सुरती
जन्म : 1935 राजुला (गुजरात)।
शिक्षा : एस.एस.सी., जी.डी. आर्ट्स (ललित कला)।
प्रकाशन : अब तक अस्सी पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें पचास उपन्यास, दस कहानी संकलन, सात नाटक, पच्चीस बच्चों की पुस्तकें, एक यात्रा-वृत्तांत, दो कविता संकलन, एक संस्मरण और कॉमिक्स। पचास साल से गुजराती तथा हिंदी की विभिन्न पत्रिकाओं और अखबारों में लेखन। उपन्यासों का कन्नड़, मलयालम, मराठी, उर्दू, पंजाबी, बंगाली और अंग्रेजी में अनुवाद। ‘ढब्बूजी’ व्यंग्य चित्रपट्टी निरंतर तीस साल तक साप्ताहिक ‘धर्मयुग’ में प्रकाशित।
दूरदर्शन, जी तथा अन्य चैनलों के लिए कथा, पटकथा, संवाद लेखन। अब तक देश-विदेशों में सोलह चित्र-प्रदर्शनियाँ आयोजित। फिल्म लेखक संघ, प्रेस क्लब (मुंबई) के सदस्य।
पुरस्कार : कहानी संकलन ‘तीसरी आँख’ को राष्ट्रीय पुरस्कार।
Email : aabidssurti@gmail.com
Web: www.aabidsurti.in
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