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उनके एक समृद्ध दोस्त ने उन्हें समझाया कि बिना फार्म हाउस के शहर के बड़ों में उनका नाम नहीं होना । सफल नेता, उद्योगपति, व्यापारी वाकई बड़े तभी बनते हैं जब उनका फार्म हाउस बने ।
उसने सलाह दी, '' सत्ताधारियों के पड़ोस से उनसे संपर्क बनेगा । नए धंधों की गुंजाइश बढ़ेगी । यह तुम्हारी कोठी भजन-पूजन के लिए ठीक है, आधुनिक स्टाइल के जीवन के लिए नहीं । ''
पटरीवाले के पुत्र को दोस्त की बात जँच गई । वह देश-विदेश घूमा था । उसने तरह-तरह की वाइन-व्हिस्की चखी थी । मीट-बीफ का स्वाद उसे लग चुका था । फार्म हाउस होगा तो ' वीक-एंड ' ही क्यों, हर शाम वहाँ रंगीन हो सकती है । बाहर के मेहमान वहीं ठहर सकते हैं । फार्म हाउस की पार्टियों का मजा ही कुछ और है । वीर भी कई बार उनमें जा चुका है । हलकी रोशनी में पूल के किनारे शराब पीने और नई-नई लड़कियों के साथ ' डांस ' करने के आनंद का कोई डिस्को क्या मुकाबला करेगा! उसने देखा था कि ऐसी पार्टियों में सरकार के आला अफसर ऐसे दुम हिलाते हैं जैसे पार्टी देनेवाले के पालतू कुत्ते हों । अगर गलती से सपत्नीक आए तो मियाँ-बीवी अलग- अलग शिकार करते हैं ।
-इसी पुस्तक से
जीवंत भाषा और रोचक शैली में लिखे इन व्यंग्य लेखों का दायरा समाज, साहित्य, संस्कृति और सियासत तक फैला हुआ है । ये व्यंग्य लेख पाठक को गुदगुदाते भी हैं और सोचने को मजबूर भी करते हैं । ये व्यंग्य आम आदमी के नजरिए से जिंदगी की विषमताओं को उजागर करते हैं ।
गोपाल चतुर्वेदी का जन्म लखनऊ में हुआ और प्रारंभिक शिक्षा सिंधिया स्कूल, ग्वालियर में। हमीदिया कॉलेज, भोपाल में कॉलेज का अध्ययन समाप्त कर उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. किया। भारतीय रेल लेखा सेवा में चयन के बाद सन् १९६५ से १९९३ तक रेल व भारत सरकार के कई मंत्रालयों में उच्च पदों पर काम किया।
छात्र जीवन से ही लेखन से जुड़े गोपाल चतुर्वेदी के दो काव्य-संग्रह ‘कुछ तो हो’ तथा ‘धूप की तलाश’ प्रकाशित हो चुके हैं। पिछले ढाई दशकों से लगातार व्यंग्य-लेखन से जुड़े रहकर हर पत्र-पत्रिका में प्रकाशित होते रहे हैं। ‘सारिका’ और हिंदी ‘इंडिया टुडे’ में सालोसाल व्यंग्य-कॉलम लिखने के बाद प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य अमृत’ में उसके प्रथम अंक से नियमित कॉलम लिख रहे हैं। उनके दस व्यंग्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें तीन ‘अफसर की मौत’, ‘दुम की वापसी’ और ‘राम झरोखे बैठ के’ को हिंदी अकादमी, दिल्ली का श्रेष्ठ ‘साहित्यिक कृति पुरस्कार’ प्राप्त हुआ है।
भारत के पहले सांस्कृतिक समारोह ‘अपना उत्सव’ के आशय गान ‘जय देश भारत भारती’ के रचयिता गोपाल चतुर्वेदी आज के अग्रणी व्यंग्यकार हैं और उन्हें रेल का ‘प्रेमचंद सम्मान’, साहित्य अकादमी दिल्ली का ‘साहित्यकार सम्मान’, हिंदी भवन (दिल्ली) का ‘व्यंग्यश्री’, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘साहित्य भूषण’ तथा अन्य कई सम्मान मिल चुके हैं।