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बीते कुछ दशकों के दौरान, भारत की छवि को बिगाड़ने में कुछ हद तक बॉलीवुड की फिल्मों का हाथ है जिनमें मंदिरों और पुजारियों की खिल्ली उड़ाई जाती है, दिखाया जाता है कि बड़े-बड़े संस्थानों के शिक्षकों को पढ़ाना नहीं आता, शिक्षकों को मूर्ख, राजनेताओं को दुष्ट, पुलिस को निर्दयी, अफसरों को संकीर्ण सोचवाला, जजों को अन्यायी, और हिंदी भाषा बोलनेवालों को हीन दृष्टि से देखा जाता है। क्या आपको आश्चर्य नहीं होता कि बॉलीवुड के फिल्मी गाने और डायलॉग उर्दू में ही क्यों लिखे जाते हैं जबकि बहुत कम ही लोग उर्दू को समझ पाते हैं? क्या आपको इस पर भी आश्चर्य नहीं होता कि हाल की बॉलीवुड की फिल्मों का हीरो कभी मंदिर क्यों नहीं जाता? आखिर क्यों बॉलीवुड की अधिकांश फिल्मों के हीरो अगर हिंदू हैं तो आम तौर पर धर्म का पालन नहीं करते जबकि सारे मुसलमानों को धर्मनिष्ठ दिखाया जाता है? आखिर क्यों कोर्ट-रूम वाली फिल्मों में भी अब भगवद्गीता पर हाथ रख कर किसी व्यक्ति के द्वारा कसम खाने वाले सीन गायब हो गए हैं? क्यों बॉलीवुड की फिल्मों की पृष्ठभूमि में भारतीय ध्वज भी नहीं दिखता? ये महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं जिनकी तह तक जाने की आवश्यकता है। इस पुस्तक का प्रयास है कि इनमें से कुछ प्रश्नों के उत्तर दिए जाएँ। समाज की सोच बनाने में फिल्मों की एक बड़ी भूमिका होती है और इस कारण परदे पर जो कुछ भी दिखाया जाता है, उसे लेकर बॉलीवुड को कहीं-न-कहीं अपनी जिम्मेदारी निभाने की जरूरत है।
प्रोफेसर धीरज शर्मा एक जाने-माने मैनेजमेंट प्रोफेसर और भारतीय प्रबंधन संस्थान, रोहतक के निदेशक हैं। वह भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद में भी प्रोफेसर (सावकाश) हैं। वह साल 2019 के लिए एकेडमी ऑफ ग्लोबल बिजनेस एडवांसमेंट (अमेरिका) के विशिष्ट ग्लोबल थॉट लीडर हैं। उन्होंने यूरोप, एशिया और उत्तरी अमेरिका के अनेक शिक्षण संस्थानों में अध्यापन किया है। अब तक उनकी 10 पुस्तकें और 150 से अधिक शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। आज भी वह अनेक सरकारी व गैर-सरकारी संगठनों के प्रबंधन बोर्ड में सेवा दे रहे हैं। वह हरियाणा सरकार की आर्थिक सलाहकार परिषद् के सदस्य हैं। वह जेलों के आधुनिकीकरण पर पंजाब सरकार के सलाहकार भी हैं। वह तेजपुर यूनिवर्सिटी में राष्ट्रपति के मनोनीत व्यक्ति, दिल्ली यूनिवर्सिटी के मानद प्रोफेसर जवाहरलाल यूनिवर्सिटी के मानद प्रोफेसर और हृढ्ढञ्जढ्ढश्व मुंबई की अकादमिक परिषद् के बाहरी सदस्य भी हैं। वह डिग्री विशिष्टता पर यूजीसी की स्थायी समिति के सदस्य भी हैं। वह इमर्जिंग इकोनॉमिक केस जर्नल के मुख्य संपादक और जर्नल ऑफ मार्केटिंग चैनल्स के पूर्व सहयोगी संपादक भी हैं।