₹500
यह पुस्तक लेखक की फिल्मी दुनिया, यानी मुंबई में रहकर जीना सीखने का लिखित दस्तावेज है, जिनका कई फिल्मी हस्तियों से संपर्क रहा। फिल्म एवं टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ पुणे के साथ-साथ फिल्म आर्कइव, फिल्म से जुड़ी लाइब्रेरी, फिल्म लेखक, गीतकार, म्यूजिक डायरेक्टर, एक्टर, चरित्र अभिनेता, कैमरामैन, स्क्रिप्ट राइटर, स्टोरी राइटर, प्रसिद्ध राइटर, प्रोड्यूसर, निर्माता, निर्देशक, फाइनेंसर, डिस्ट्रीब्यूटर, अर्थात् ज्ञान और अनुभव हेतु लेखक को जहाँ और जिनसे मिलने की संभावना बनी, वे वहाँ पर बेहिचक पहुँचकर उसे समझने और हासिल करने की कोशिश में जुट गए। कुछ पुराने अनुभव हटते गए, नए अनुभव जुटते गए और लेखक चिंतन की गहराई में डूबते हुए इस मोड़ पर पहुँचा कि अपने छोटे से, किंतु संघर्षमय अनुभव को आनेवाली पीढ़ी के सामने रखने का यह उपक्रम किया।
फिल्मों के विभिन्न स्वरूपों पर विस्तृत व्यावहारिक जानकारी देनेवाली प्रामाणिक पुस्तक, जो फिल्मों के शौकीनों के साथ-साथ शोधार्थियों के लिए भी समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी।
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अनुक्रम
विषय की प्रासंगिकता—Pgs. 7
पटकथा तथ्य और कथ्य—Pgs. 11
पुस्तक परिचय—Pgs. 15
• क्या है पटकथा?—Pgs. 21
• पटकथा बनाम दृश्यकाव्य—Pgs. 23
• अच्छे Ideas प्राप्त करना—Pgs. 25
• लक्ष्य एवं आवश्यकताएँ—Pgs. 26
• कथानक—Pgs. 29
• फिल्मी कथा के प्रकार—Pgs. 30
• कहानियों के प्रकार—भय उत्पन्न करनेवाली कहानियाँ (Horror)—Pgs. 32
• विज्ञान पर आधारित कथा—Pgs. 32
• जासूसी कथा साहित्य या जासूसी पर आधारित कथा—Pgs. 33
• यथार्थवादी फिल्मों की परिकल्पना—Pgs. 33
• मिथक तथा साहित्य—Pgs. 34
• पात्रों के सृजन के मूल मंत्र—Pgs. 34
• विकास प्राप्ति की गुंजाइश—Pgs. 40
• गौण बातों का महत्त्व—Pgs. 44
• अनुकूलन—Pgs. 45
• फिल्म में एक्शन—Pgs. 48
• बिंब के विधान —Pgs. 51
• कहानियों की कार्यविधि—Pgs. 53
• चलचित्र कथा की विशिष्टताएँ—Pgs. 53
• संरचनात्मकता का महत्त्व—Pgs. 54
• आरंभ, मध्य तथा अंत —Pgs. 55
• जीवन-पथ में अनपेक्षित परिवर्तन—Pgs. 55
• कहानी का प्रवाह और मनोविज्ञान—Pgs. 56
• पात्र—Pgs. 57
• प्रध्वंसक अनुभव—Pgs. 57
• संघर्ष तथा संकटावस्था—Pgs. 58
• शक्ति-प्रयोग—Pgs. 60
• समापन या सिद्धि—Pgs. 61
• निर्वहन—Pgs. 63
• सूत्रबद्ध लेखन—Pgs. 63
• उतार-चढ़ाव—Pgs. 75
• आरंभ और अंत—Pgs. 91
• कथा के बिंदु—Pgs. 93
• फिल्मों में मध्यांतर की महत्ता—Pgs. 97
• संवाद क्या है?—Pgs. 99
• लेखक तथा कला—Pgs. 102
• भूमिका निर्धारण—Pgs. 104
• दृश्यों का सृजन, कैसे करें?—Pgs. 105
• अवधारणा—Pgs. 108
• उद्देश्यपूर्ण दृश्य—Pgs. 112
• समस्याओं का जन्म—Pgs. 112
• गुमराह चरित्र की विडंबना—Pgs. 114
• तनाव में तीव्रता ला दें—Pgs. 114
• स्क्रिप्ट की लंबाई—Pgs. 117
• निर्देश—Pgs. 117
• हाशिया मार्जिन—Pgs. 119
• टेलीफोन, मोबाइल, कैमरा—Pgs. 119
• फिल्म से शिक्षा—Pgs. 120
• अन्य फिल्मों के दृश्य व गीत—Pgs. 121
• लेखक बनाम लेखक व मुहावरा —Pgs. 121
• अदृश्य ध्वनि—Pgs. 123
• पात्र का भाषण—Pgs. 123
• विदेशी भाषा और फिल्म—Pgs. 123
• कमेडी-स्थिति सह महत्त्व—Pgs. 124
• जब पटकथा पूर्ण हो जाए—Pgs. 125
• सुरक्षा के अन्य साधन—Pgs. 127
• मित्र लाभ—Pgs. 130
• सम्मोहक कथा सारांश—Pgs. 131
• उद्देश्य, दर्शकगण तथा नीति (अनुकूल नीति)—Pgs. 133
• पटकथा सामग्री—Pgs. 135
• अपना अनुभव लिखो—Pgs. 135
• संयम—Pgs. 136
• लेखन की सफलता हेतु कुछ सुझाव—Pgs. 142
• दृश्य और मनःस्थिति की रचना करना—Pgs. 143
• परिस्थितियाँ स्वयं बोलती हैं—Pgs. 145
• आरंभ के चार सीन—Pgs. 146
• लेखकीय क्षमता—Pgs. 146
• हिंदी सिनेमा का समकालीन अध्ययन—Pgs. 147
• होम वीडियो—Pgs. 149
• एक अनार दो बीमार —Pgs. 150
• प्रयोगधर्मी फिल्मकार—Pgs. 152
• बदली है पटकथाकारों की दुनिया—Pgs. 156
• हॉलीवुड बनाम बॉलीवुड—Pgs. 157
• मदर इंडिया—Pgs. 161
• मुगल-ए-आजम—Pgs. 177
• शोले—Pgs. 183
• टाइटेनिक—Pgs. 198
• श्री 420—Pgs. 210
• उपकार—Pgs. 218
• कोई मिल गया—Pgs. 226
• एक दूजे के लिए—Pgs. 236
रतन प्रकाश
बहुविध व्यक्तित्व। हिंदी साहित्य के प्रोफेसर रहे, किंतु कई विषयों का अध्ययन किया। पूरा जीवन अध्ययन और संघर्ष के श्वेत-श्याम (रंग नहीं स्वाद) अनुभवों के साथ गतिशील तलाश जारी है। (नाटक) ‘दर्द-ए-ताज’, ‘फिर मिलेंगे’ एवं ‘सर्किट हाउस’ (उपन्यास) का उर्दू में अनुवाद हुआ। पिछले अड़तीस वर्षों में थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, जर्मनी, लंदन, फ्रांस, लॉस एंजेल्स, न्यूयॉर्क व हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में व्याख्यान हेतु आमंत्रित। राँची विश्वविद्यालय व बिहार सरकार के आर्थिक अनुदान से अनेक देशों की यात्रा। फिल्मों में लेखन के प्रति लगाव। वर्तमान में मुंबई कर्मभूमि है।
प्रोफेसर रतन प्रकाश के बहुआयामी व्यक्तित्व से ऐसी अनूठी पुस्तक की आशा कब से कर रहा हूँ। इस पुस्तक से फिल्म-लेखन को समझने में सुविधा होगी। आशा है, यह शोधपरक पुस्तक कई अनछुए मार्गों को आलोकित करेगी, चूँकि बॉलीवुड से हॉलीवुड तक की यात्रा और गहन अनुभव इसकी विशेषता है।
—डॉ. श्याम सिंह ‘शशि’
ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया
नई दिल्ली