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नासिरा शर्मा के उपन्यासों एवं कहानियों में बच्चों के चरित्र एक विशेष भूमिका के रूप में नज़र आते हैं, जो कभी आपकी उँगली पकड़कर तो कभी आप उनकी उँगली पकड़कर चलने लगते हैं और आप खुद से सवाल करने पर मजबूर हो जाते हैं कि इन बच्चों की दयनीय स्थिति का ज़िम्मेदार कौन है— परिस्थितियाँ, समाज या व्यवस्था या आप खुद? दरिद्रता और अपनों से लापरवाही तो अहम कारणों में से हैं, परंतु रिश्तों में सहृदयता व सरोकार जैसे चुकते जा रहे हों और ये कहानियाँ अपने बाल-चरित्रों द्वारा हमें झिंझोड़ने का काम करती हैं।
बच्चे किसी भी नस्ल, धर्म एवं जाति के हों, वे मानव समाज का विस्तार और मानवीय मूल्यों की अमूल्य संपदा हैं, जो किसी भी देश का भविष्य निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाने में अपना योगदान देंगे। आज अनेक तरह की विपदाएँ हमारे सामने हैं, जिनमें प्राकृतिक एवं युद्ध की विषमताएँ भी शामिल हैं और परिवार के टूटने एवं रिश्तों के प्रति संवेदनहीन होने की समस्या भी। इन सारी कठिनाइयों को एक मासूम बच्चा कैसे सहता है और उसके मन-मस्तिष्क में अटके उन दृश्यों का मनोविज्ञान क्या होता है—इन कहानियों द्वारा पाठक बहुत कुछ महसूस करेंगे।
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अनुक्रम
1. फिर कभी —Pgs.9
2. काला सूरज —Pgs.18
3. गूँगी गवाही —Pgs.22
4. उसका बेटा —Pgs.41
5. मिट्टी का स़फर —Pgs.49
6. मिस्टर ब्राउनी —Pgs.63
7. असली बात —Pgs.77
8. मटमैला पानी —Pgs.85
9. सबीना के चालीस चोर —Pgs.94
10. आया बसंत सखी —Pgs.117
11. ज़रा सी बात —Pgs.132
12. गलियों के शहज़ादे —Pgs.138
जन्म : 1948, इलाहाबाद में।
शिक्षा : फारसी भाषा और साहित्य में एम.ए.।
रचना-संसार : ‘ठीकरे की मँगनी’, ‘पारिजात’, ‘शाल्मली’, ‘ज़िंदा मुहावरे’, ‘कुइयाँजान’, ‘ज़ीरो रोड’, ‘सात नदियाँ एक समुंदर’, ‘अजनबी जजीरा’, ‘अक्षयवट’ और ‘का़गज़ की नाव’ (उपन्यास); ‘कहानी समग्र’ (तीन खंड), ‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘शामी का़गज़’, ‘पत्थर गली’, ‘संगसार’, ‘इब्ने मरियम’, ‘सबीना के चालीस चोर’, ‘़खुदा की वापसी’, ‘बुत़खाना’, ‘दूसरा ताजमहल’, ‘इनसानी नस्ल’ (कहानी-संग्रह); ‘अ़फगानिस्तान : बुजकशी का मैदान’ (संपूर्ण अध्ययन दो खंड), ‘मरजीना का देश इराक’, ‘राष्ट्र और मुसलमान’, ‘औरत के लिए औरत’, ‘वो एक कुमारबाज़ थी’ (लेख-संग्रह); ‘औरत की आवाज़’ (साक्षात्कार); ‘जहाँ फौवारे लहू रोते हैं’ (रिपोर्ताज); ‘यादों के गलियारे’ (संस्मरण); ‘शाहनामा फ़िरदौसी’, ‘गुलिस्तान-ए-सादी’, ‘किस्सा जाम का’, ‘काली छोटी मछली’, ‘पोयम ऑफ परोटेस्ट’, ‘बर्निंग पायर’, ‘अदब में बाईं पसली’ (अनुवाद); ‘किताब के बहाने’ और ‘सबसे पुराना दरख़्त’ (आलोचना); बाल-साहित्य में ‘दिल्लू दीनक’ और ‘भूतों का मैकडोनाल्ड’ (उपन्यास); ‘संसार अपने-अपने’, ‘दादाजी की लाठी’ (कहानी); ‘प्लेट़फार्म नं. ग्यारह’, ‘दहलीज़’ तथा ‘मुझे अपना लो’ (रेडियो सीरियल); ‘नौ नगों का हार’ (टी.वी. सीरियल)।