₹600
गांधी और आंबेडकर पर अनेक छोटे-बडे़ अध्ययन हुए हैं; किंतु अस्पृश्यों की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन की दृष्टि से उनके विचारों और कार्यों का अध्ययन आंशिक रूप से ही हुआ है। प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य अस्पृश्यता के परिप्रेक्ष्य में गांधी और आंबेडकर का समग्र रूप से तुलनात्मक विवेचन करना है।
इस पुस्तक में इन दोनों महान् व्यक्तियों के जीवन-संदर्भों, विचारधाराओं, स्वतंत्रता-संग्राम के समय की सामाजिक-राजनीतिक प्रक्रियाओं का विश्लेषण करते हुए, भारत की वर्तमान परिस्थितियों में दोनों के विचार और कर्म की भूमिका तथा दलितों की वर्तमान स्थिति में इनकी प्रासंगिकता की खोज की गई है।
लेखक का यह विश्वास है कि ऐतिहासिक स्थिति जो भी रही हो, किंतु वर्तमान संदर्भ में गांधी और आंबेडकर एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी नहीं वरन् पूरक हैं। इन दोनों से एक साथ प्रेरणा लेकर
ही ऐसी सामाजिक-राजनीतिक शक्ति उभारी जा सकती है, जो भारतीय समाज में फैली जातिप्रथा और उससे जुड़ी सामाजिक विषमताओं से जूझने तथा जीतने में समर्थ होगी।
8 दिसंबर, 1938 - 11 अप्रैल, 1998
कोटा (राजस्थान) में जनमे गणेश मंत्री हिंदी के वरिष्ठ चिंतक, लेखक और पत्रकार थे । समाजशास्त्र और कानून के अध्ययन के बाद कुछ समय तक उन्होंने वकालत और ट्रेड यूनियन के कार्य का अनुभव लिया । तदुपरांत पत्रकारिता करने के लिए मुंबई आ गए और हिंदी की तत्कालीन प्रमुख पत्रिका ' धर्मयुग ' में उपसंपादक से आरंभ करके प्रधान संपादक पद तक पहुँचे ।
अपने लगभग छत्तीस वर्षीय पत्रकार-जीवन में उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं पर विपुल मात्रा में लेखन किया । विषय का गहन अध्ययन, पैना विश्लेषण और सशक्त प्रतिपादन उनके लेखन की विशेषता है ।
प्रकाशित पुस्तकें-' रूस-चीन विवाद ', ' मार्क्स, गांधी और सामयिक संदर्भ ', ' राजधानी कल्चर ', ' गोआ मुक्ति संघर्ष '; ' समता-दर्शन', ' विषमता ' (संपादित) ।